चर्म रोग और ज्योतिष :

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चर्म रोग और ज्योतिष :

चर्म रोग : हमारा शरीर ग्रहों के अधीन है । हमारे शरीर के सभी अंगों की स्वस्थता एवं रोग का विचार ग्रहों की स्थिति से किया जाता है। शरीर की चमड़ी का कारक ग्रह बुध होता है । कुंडली में बुध की स्थिति से शरीर की चमड़ी की जानकारी प्राप्त होती है। कुंडली में बुध जितनी उत्तम अवस्था में होगा, जातक की चमड़ी उतनी ही चमकदार एवं स्वस्थ होगी। यदि कुंडली में बुध पाप ग्रह राहु, केतु या शनि के साथ किसी भी भाव में बैठा हो या दृष्टि से सम्बन्ध बन रहा हो तो चर्म रोग होने के पूरे आसार बनेंगे। इसमें रोग की तीव्रता ग्रह की प्रबलता पर निर्भर करती है । उपरोक्त पापी ग्रह बुध कितनी डिग्री से पूर्ण दीप्तांशों में देखता है या नहीं । ग्रह किस नक्षत्र में कितना प्रभावकारी है यह भी रोग की भीषणता बताता है क्योंकि एक रोग सामान्य सा उभरकर आता है और ठीक हो जाता है । दूसरा रोग लंबा समय लेता है, साथ ही जातक के जीवन में चल रही महादशा पर भी निर्भर करता है । आइये जानते हैं ऐसे कुछ योगों के बारे में जो शरीर में जो शरीर में चर्म रोग अवश्य देंगे :
यदि मंगल किसी भी तरह से पाप ग्रहों से ग्रस्त हो, नीच हो, शत्रु राशि हो या वक्री हो तो वह रक्त संबंधी रोग पैदा करेगा।
यदि मंगल बुध का योग होगा तो रक्त या चार्म रोग की समस्या अवश्य खड़ी होगी।
यदि मंगल शनि का योग शरीर में खुजली पैदा करने के साथ साथ रक्त भी खराब करेगा।
यदि शनि पूर्ण बली होकर मंगल के साथ तृतीय स्थान पर हो तो जातक को खुजली का रोग होता है।
यदि मंगल और केतु छठे या बारहवें स्थान में हो तो चर्म रोग होता है।
यदि मंगल और शनि छठे या बारहवें भाव में हों तो व्रण (फोड़ा, छिद्र या घाव)) होता है।
यदि मंगल षष्ठेश के साथ हो तो चर्म रोग होता है।
यदि षष्ठेश शत्रुगृही, नीच, वक्री अथवा अस्त हो तो चर्म -रोग होता है।
यदि षष्ठेश पाप ग्रह होकर लग्न, अष्टम या दशम स्थान में बैठा हो तो चर्म-रोग होता है।
यदि बुध और राहु षष्ठेश और लग्नेश के साथ हो तो चर्म-रोग होता है।
यदि षष्टम भाव में कोई भी ग्रह नीच, शत्रुक्षेत्री, वेक्री अथवा अस्त हो तो भी चर्म रोग होता है।
यदि षष्ठेश पाप ग्रह के साथ हो तथा उस पर लग्नस्थ, अष्टमस्थ दशमस्थ पाप ग्रह की दृष्टि हो तो चर्म रोग होता है।
यदि शनि अष्टमस्थ और मंगल सप्त्मस्थ हो तो जातक को पंद्रह से तीस वर्ष की आयु में चेहरे पर फुंसी होती है।
यदि लग्नेश मंगल के साथ लग्नगत हो तो पत्थर अथवा किसी शस्त्र से सिर में छिद्र होते हैं।
यदि लग्नेश मंगल के साथ लग्नगत हो और उसके साथ पाप ग्रह हो अथवा पाप ग्रह की दृष्टि पड़ती हो तो पत्थर अथवा किसी शस्त्र के द्वारा सिर में व्रण (छिद्र या घाव) होता है।
यदि लग्नेश शनि के साथ लग्न में बैठा हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो अथवा लग्न में और कोई भी पाप ग्रह हो तो जातक के सिर में चोट से या अग्नि से व्रण (छिद्र या घाव) होते हैं।
यदि षष्ठेश, राहु अथवा केतु के साथ लग्न में बैठा हो तो जातक के शरीर में व्रण (छिद्र या घाव) होता है ।

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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार (Mob)- 9438741641 /9937207157 (call/ whatsapp)

Acharya Pradip Kumar is one of the best-known and renowned astrologers, known for his expertise in astrology and powerful tantra mantra remedies. His holistic approach and spiritual sadhana guide clients on journeys of self-discovery and empowerment, providing personalized support to find clarity and solutions to life's challenges.

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