Mantra Tantra Vishayak Bhrantiyan :
सामान्य जन तंत्र का अर्थ भी मंत्र यंत्र की भांति जादू टोना और झाड-फूंक की रहस्यों से भरी बिदया समझ्ता है और शिखित समाज इसे कोरा पाखंड, भ्रम और ठ्गी का पेशा समझता है । कुछ लोग इसे बाजीगरों के खेलों जैसा ख्यणभर के लिए दिखाये जाने बाले तमाशे की बिद्या समझने की भूल करते हैं ।
ऐसी तंत्र बिषयक भ्रांन्तियां (Tantra Vishayak Bhrantiyan) कयों पैदा हुई ?
इस तंत्र बिषयक भ्रांन्तियां (Tantra Vishayak Bhrantiyan) के पीछे बहुत से कारण है ।
Tantra Vishayak Bhrantiyan :
जब तंत्र का बहुत प्रचलन हो गया और उसकी सिद्धियों से समाज लाभान्बित होने से तांत्रिकों की प्रतिष्ठा बढी और सम्मान हुआ तो नकली तांत्रिक भी होने लगे । अधकचरे ज्ञान या अज्ञान के कारण जो सिद्धियां प्राप्त किए बिना समाज में सम्मान पाना चाहते थे उन्होने कुछ चालाकियां सीख लीं और हाथ की सफाई को भी “तंत्र ज्ञान” कहने लगे । लोग अनकी चालाकी नहीं भांप सके और बे अपनी उस सफाई को तंत्र शक्ति बताते रहे । साधारण लोग इसे तंत्र समझने लगे ।
तंत्र को लोगों ने मारने, समाप्त करने या दुसरों को अन्य प्रकार से हानि पहुंचाने की भी बिद्या समझा है । इसका कारण यही रहा है कि अधिकांश तांत्रिकों ने “मारण” “उचाटन” ही किया । तंत्र का दुरुपयोग ही किया, “शांन्ति कर्म” या निर्माण कार्य नहीं किये गए । सिद्धियों से निजी स्वार्थ हल किये गए । दुसरों को मिटाने के निम्न कर्म किये गए । इससे तंत्र बदनाम हुआ ।
लोगों की धारणा बन गई कि तंत्र बिदया होती ही घात-प्रतिघात के लिए है । आज भी कुछ लोग ऐसा मानते है ।
तंत्र के बदनाम होने का एक कारण बे “पंचमकार” भी है जिन्हें तंत्र साधना में कुछ स्वार्थी और ब्यभीचारी लोगों ने ठूंस दिया । बे पंचमकार (तंत्र बिषयक भ्रांन्तियां Tantra Vishayak Bhrantiyan) है—
“मद्द् मांसं, मीनं च मुद्रा मैथुनेब च।
एते पंच मकारा: स्यु: मोख्यदा: हि युगे-युगे।।”
अर्थात् शराब, मांस,मछ्ली, मुद्रा और मैथुन (सम्भोग) ये पांच मकार युग-युग में मोख्य देने बाले हैं । यही कारण है कि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने ग्रंथ “सत्यार्थ प्रकाश” में तंत्र साधकों की कसकर खबर ली है और पंचमकार बालों, बाममार्गी लोगों की बहुत निन्दा की और खंडन किया है । खंडन करने योग्य न जाने कितनी बातें तंत्रो में भर दी गई ।
काली तंत्र में लिख दिया गया—-
“मद्द् मांसं च मीनं च मुद्रा मैथुनेब च।
एते पंचमकारा: स्यु: मोख्यदा: हिकलि युगे।।”
“पीत्वा-पीत्वा पुन: पीत्वा याबत पतति भूतले।
पुनरूत्थाय बै पीत्वा पुनर्जन्म न बिद्ते।”
अर्थात् शराब पिए, पीता रहे, बार-बार पीता रहे, जब तक जमीन पर गिर न जाए, पीता रहे । उठे, उठकर फिर पिए । इसके बाद बह पुनर्जन्म के बंधन से छुट जाता है ।
“रजस्वला पुष्करं तीर्थ, चांडाली तु महाकाशी।
चर्मकारी प्रयाग: स्यात् रजकी मथुरा मता।”
“अर्थात् – (तंत्र मार्ग मे) रजस्वला (मासिक धर्म बाली) पुष्कर तीर्थ के समान, चाडाल की लडकी या स्त्री महाकाशी के समान, चमारी प्रयाग राज के समान और धौबिन मथुरा के समान है ।”
तंत्र बिषयक भ्रांन्तियां (Tantra Vishayak Bhrantiyan) अब अनुमान लगाया जा सकता है कि जिस साधना मार्ग के अनुयायियों के ऐसे बिचार होंगे उसे कोई सभ्य ब्यक्ति कैसे उचित मान सकता है ।
ब्यभिचारियों और दुष्टों की जमात ही ऐसे साधकों को भले लोग की श्रेणी में मानेगी । बास्तबिकता यह है कि इन लोगों ने अर्थ के अनर्थ भी किये हैं ।
बहुत से श्वदों के अर्थ ऐसे निकाले है तथा बहुत से श्लोक गढकर तंत्र ग्रंथों में भर दिये हैं । सम्भोग, पशुबलि, रक्त-स्नान या मदिरा पान, बीर्य-पान आदि घृणित कर्मो को तंत्रो में जोडना नीचता के अतिरिक्त और कुछ नहीं है ।
बाममार्गी साधना के भी ये अर्थ नहीं थे जो कर दिये गए । अब तो जीभ के स्वाद और शारीरिक आनन्द के लिये संभोग, मांस, मछली और मदिरा को खाया जाता है और उसे साधना बताया जाता है । यह भूल भी है और नीच कर्म भी । तंत्र बिषयक भ्रांन्तियां (Tantra Vishayak Bhrantiyan) इन्हीं कर्मो के कारण हीन दृष्टि से देखी जाने लगी ।
अन्त में हम यही कहना चाहते है कि तंत्र बुरा नहीं है । “तंत्र” बिदया और साधना मार्ग यदि सही तरीके से अपनाया जाये तो सुफलदायक है इसके प्रति जो घृणा लोगों के मन में आई या यह बदनाम हुआ, इसका कारण बास्तबिक ज्ञान न होना तथा अधकचरे, ठग, स्वार्थी लोगों द्वारा इसके माध्यम से धन कमाना है । यंहा आप लोग के सामने तंत्र बिषयक भ्रान्तिया (Tantra Vishayak Bhrantiyan) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी रखा गया है , कोनसा सही है वो आप ही जानते हो ।
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जय माँ कामाख्या