जन्मकुंडली और रोगों की तीव्रता

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जन्मकुंडली और रोगों की तीव्रता :

रोगों के क्षेत्र में चिकित्सा विज्ञान के साथ ही ज्योतिष विज्ञान के ग्रह एवं नक्षत्रों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जन्म कुण्डली से इस बात को जानने में बहुत सहायता मिलती है कि व्यक्ति को कब , क्यों और किस प्रकार के रोगो की सम्भावना है । इसी प्रकार नक्षत्रों का भी रोग विचार करने में महत्वपूर्ण स्थान होता है जिसमें रोग की अवधि और उसके ठीक होने के समय को भी जाना जा सकता है। जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में लग्न (देह), चतुर्थेश (मन) और पंचमेश (आत्मा) इन तीनों की स्थिति अच्छी होती है, वह सदैव स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है ।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल अग्नि तत्व का, बुध पृ्थ्वी तत्व का, बृ्हस्पति आकाश तत्व का, शुक्र जल तत्व का और शनिश्चर वायु तत्व के प्रतिनिधि हैं । मनुष्य के शरीर में इन तत्वों की कमी अथवा वृ्द्धि का कारण तात्कालिक ग्रह स्थितियों के आधार पर जानकर ही कोई भी विद्वान ज्योतिषी भविष्य में होने वाले किसी रोग-व्याधि का बहुत ही आसानी से पता लगा लेता है। क्यों कि इन पंचतत्वों का असंतुलन एवं विषमता ही शारीरिक रोग-व्याधी को जन्म देता है ।
जन्म कुंडली के भावों, राशियों, नक्षत्रों तथा ग्रहों एवं विशिष्ट समय पर चल रही दशाओं का संपूर्ण अध्यन करके शरीर पर रोग का स्थान एवं प्रकृति, निदान तथा रोग का संभावित समय एवं तीव्रता का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ।
ज्योतिष द्वारा रोग निदान की विद्या को चिकित्सा ज्योतिष भी कहा जाता है। इसे मेडिकल ऍस्ट्रॉलॉजी (Medical Astrology) कहा जा सकता है। यदि समय रहते इनका चिकित्सकीय एवं ज्योतिषीय उपचार दोनों कर लिए जाएं तो इन्हें घातक होने से रोका जा सकता है।
ज्योतिष शास्त्र में 12 भाव/राशियां, 9 ग्रह व 27 नक्षत्र अपनी प्रकृति एवं गुणों के आधार पर व्यक्ति के अंगों और बीमारियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सामान्यतः जन्म कुंडली में जो राशि अथवा जो ग्रह छठे, आठवें, या बारहवें स्थान से पीड़ित हो अथवा छठे, आठवें, या बारहवें स्थानों के स्वामी हो कर पीड़ित हो, तो उनसे संबंधित बीमारी की संभावना अधिक रहती हैं। कुंडली अनुसार संभावित रोग का समय और प्रकार और कारण….
1- ज्योतिष के अनुसार किसी रोग विशेष की उत्पत्ति जातक के जन्म समय में किसी राशि एवं नक्षत्र विशेष में पाप ग्रहों की उपस्थिति, उन पर पाप प्रभाव, पाप ग्रहों के नक्षत्र में उपस्थिति एवं रोग कारक ग्रहों की दशा एवं दशाकाल में प्रतिकूल गोचर, पाप ग्रह अधिष्ठित राशि के स्वामी द्वारा युति या दृष्टि रोग की संभावना को बताती है।
2- रोग कारक ग्रह जब गोचर में जन्मकालीन स्थिति में आते हैं और अंतर-प्रत्यंतर दशा मं् इनका समय चलता है तो उसी समय रोग उत्पन्न होता है।
3- कुंडली में मौजूद कौन-सा ग्रह, कौन-सी स्थिति में है। इससे तय होता है का स्वास्थ्य कैसा होगा। अलग – अलग ग्रहों का असर भी अलग – अलग होता है।
4- यदि कुंडली में सूर्य, चंद्र, शनि, मंगल ग्रह विशेष भावों में राहु-केतु से पीड़ित होते हैं तभी नकारात्मक तंत्र-मंत्र व्यक्ति पर असर डालते हैं।
5- यदि षष्ठेश चर राशि में तथा चर नवांश में स्थित होते हैं तो रोग की अवधि छोटी होती है। द्विस्वभाव में स्थित होने पर सामान्य अवधि होती है। स्थिर राशि में होने पर रोग दीर्घकालीन होते हैं।
6- ज्योतिष में चंद्रमा मन के कारक हैं। लग्न शरीर का प्रतीक है तथा सूर्य आत्मा, जन्मजात रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारक हैं अत: चंद्रमा, सूर्य एवं लग्नेश के बली होने पर व्यक्ति आरोग्य का सुख भोगता है।
7- राशियों ग्रह तथा नक्षत्रों का अधिकार क्षेत्र शरीर के विभिन्न अंगों पर है इसके अतिरिक्त कुछ रोग, ग्रह अथवा नक्षत्र की स्वाभाविक प्रकृति के अनुसार जातक को कष्ट देते हैं ।
8- कुंडली में षष्ठम भाव को रोग कारक व शनि को रोग जन्य ग्रह माना जाता है। शरीर में कब, कहां, कौन सा रोग होगा वह इसी से निर्धारित होता है। यहां पर स्थित क्रूर ग्रह पीड़ा उतपन्न करता है । उस पर यदि शुभ ग्रहो की दृष्टि न हो तो यह अधिक कष्टकारी हो जाता है ।
9- यदि षष्ठेश, अष्टमेश एवं द्वादशेश तथा रोग कारक ग्रह अशुभ तारा नक्षत्रों में स्थित होते हैं तो रोग की चिकित्सा निष्फल रहती है ।

ग्रहो से संबंधित रोगों –

यदि कुंडली में ये ग्रह छठे भाव के स्वामी के साथ सम्बंध बनायें, और उनकी दशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा आये है तो उसी समय उस दशानाथ से सम्बंधित बीमारी जन्म लेती है।

जानिए किस ग्रह के कारण कौन सा रोगों होता है..??

सूर्य – हड्डी का रोगों , मुँह से झाग निकलना, रक्त चाप, पेट की दिक़्क़त
चंद्रमा – मानसिक तनाव, माइग्रेन, घबराहट, आशंका की बीमारी
मंगल – रक्त सम्बंधी समस्या, उच्च रक्तचाप, कैंसर, वात रोगों , गठिया, बनासीर, आंव
बुध – दंत सम्बंधी बीमारी, हकलाहट, गुप्त रोगों , त्वचा की बीमारी, कुष्ट रोगों , चेचक, नाड़ी की कमजोरी
गुरु (बृहस्पति) – पेट की गैस, फेफड़े की बीमारी, यकृत की दिक़्क़त, पीलिया
शुक्र – शुक्राणुओं से सम्बंधित , त्वचा, खुजली, मधुमेह
शनिश्चर – कोई भी लम्बी चलने वाली बीमारी जैसे एड्स, कैंसर आदि
राहू – बुखार , दिमाग़ी बिमारी, दुर्घटना आदि
केतू – रीढ़, स्वप्नदोष, कान, हार्निया
जन्म कुंडली में रोगों उत्पन करने वाले ग्रहो के निदान के लिए पूजा, पाठ, मंत्र जप, हवन( यज्ञ ), यंत्र एवं विभिन्न प्रकार के दान आदि साधन ज्योतिष शास्त्र में उल्लेखित है । कुशल ज्योतिषी की सलाह पर बीमारी से सम्बंधित भाव , भावेश तथा कारक ग्रह से सम्बंधित ज्योतिषीय उपाय करते हुए रोगों के प्रभाव को कम किया जा सकता है ।

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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार (Mob) 9438741641 /9937207157 (call/ whatsapp)

Acharya Pradip Kumar is one of the best-known and renowned astrologers, known for his expertise in astrology and powerful tantra mantra remedies. His holistic approach and spiritual sadhana guide clients on journeys of self-discovery and empowerment, providing personalized support to find clarity and solutions to life's challenges.

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