ज्योतिष के कुछ प्रसिद्ध अरिष्ट अर्थात दुर्योग –

ज्योतिष के कुछ प्रसिद्ध अरिष्ट अर्थात दुर्योग –

अरिष्ट अर्थात दुर्योग (केमद्रुम योग )– यदि चंद्रमा से दुसरे तथा बारह्बे भाब में कोई ग्रह न हो तो यह योग बनता है । ऐसे ब्यक्ति निर्धन, नीचप्रबृति, कुरूप, कर्म –बिरुद्ध आचरण करने बाले होते हैं । यदि चन्द्रमा केंद्र में हो अथबा किसी अन्य ग्रह से युक्त हो तो अशुभ फल नष्ट हो जाते हैं ।

बेशि योग – अरिष्ट अर्थात दुर्योग में बेशि योग अन्यतम है ,यदि सूर्य से 12बें भाब में मंगल हो तो ब्यक्ति अपनी माता का अहित करने बाला होता है ।

शर योग – यदि सुर्यादी सातों ग्रह चौथे, पाँचबें, छठे तथा सातबें भाब में एकत्र हो जाएँ तो यह अरिष्ट अर्थात दुर्योग बनता है । ऐसे ब्यक्ति दुराचारी, महाहिंसक, दुःख से पीड़ित तथा कभी भी प्रसन्न न होने बाले होते हैं ।

शक्ति योग – यदि सातों ग्रह सातबें, आठ्बें, नबें तथा दसबें भाब में हों तो ब्यक्ति अल्पसुख भोगता है । यह अरिष्ट अर्थात दुर्योग से ब्यक्ति आलसी तथा बिबादी होते हैं ।

दण्ड योग – यदि सातों ग्रह दसबें, ग्यारह्बें, बारह्बें तथा लग्न में स्थित हों तो यह योग बनता है । ऐसे ब्यक्ति नीचप्रबृति तथा दरिद्र होते हैं ।

कूट योग – यदि चौथे भाब से आगे दसबें भाब तक सातों ग्रह आ जाएँ तो, यह अरिष्ट अर्थात दुर्योग के कारण ब्यक्ति दरिद्र, नीचप्रबृति तथा अधर्मी होता है ।

चाप योग – यदि दसबें भाब से आगे चौथे भाब तक सातों ग्रह एकत्रित हों तो ब्यक्ति मिथ्याबादी तथा भाग्यहीन होता है ।

युग योग – यदि सातों ग्रह केबल दो राशियों में एकत्रित हो तो ब्यक्ति पाखण्डी, अधर्मी तथा रोगी होता है ।

पक्षी योग – यदि समस्त ग्रह चौथे तथा दसबें भाब में एकत्रित हो जाएँ तो यह योग बनाते हैं । ऐसे ब्यक्ति कलह प्रेमी तथा हठी स्वभाब के होते हैं ।

सर्प योग – यदि सूर्य, मंगल तथा शनि सातबें तथा दसबें भाब में हो और चन्द्र, गुरु, शुक्र तथा बुध इनसे भिन्न स्थानों में स्थित हो तो योग बनता है । ऐसे ब्यक्ति निर्धन, क्रोधी तथा दुःख भोगने बाले होते हैं ।

शूल योग – यदि सुर्यादि सातों ग्रह केबल तीन राशियों में स्थित हो तो यह योग बनता है । यह ब्यक्ति हिंसक, आलसी तथा निर्धन होते हैं ।

मांगलिक योग – जन्म कुंडली लग्न से मंगल यदि 1, 4, 7, 8 अथबा 12 बें भाब में स्थित हो तो यह योग बनता है । कुछ प्रान्तों में चन्द्र, सूर्य लग्न तथा शुक्र ग्रह से भी मंगल की उक्त भाबों में स्थिति को मंगलदोष माना जाता है । ज्योतिष में दम्पति के मेलापक द्वारा इस दोष से भाबी जीबन के दुःख – सुख, आयु, आय –ब्यय, सुखमय बैबाहिक जीबन आदि का बिचार किया जाता है । अनेक स्थितियों में मंगलदोष का परिहार हो जाता है परन्तु यह प्राय: अनदेखा कर दिया जाता है । मंगलदोष जब समाप्त होता है तो मंगली, मंगलप्रदा अर्थात मंगलयोग मंगलप्रदाता हो जाता है । यह बिबादस्पद योग है । किसी योग्य बिद्वान से चर्चा करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचे ।

पाप कर्तरी योग – लग्न से दुसरे तथा बारहबे भाब में पाप ग्रह स्थित हों तो यह योग बनाते हैं । ऐसे ब्यक्ति दारिद्र, दुखी, अल्पायु, पुत्ररहित तथा अपबित्र होते हैं ।

दारिद्र योग – यदि निम्न योग धन स्थान में बनते हैं तो पूर्णरूप से अरिष्टकारी सिद्ध होते हैं । अन्य भाबों में इनका फल नुन्य होता हैं ।

1. छठे भाब के स्वामी ग्रह और पहले, दुसरे, तीसरे, चौथे, पाँचबे, सातबें, आठ्बें, नबें, दसबें, ग्यारहबें अथबा बारहबें भाब के स्वामी ग्रहों का योग अरिष्ट अर्थात दुर्योग योग बनता है ।
2. बारह्बें भाब के स्वामी ग्रह और पहले, दुसरे, तीसरे, चौथे, पांचबे, सातबें, आठ्बे, नबें, दसबें अथबा ग्यारह्बे भाब के स्वामी योग (जातक तत्व, जातक पारिजात आदि मूल ग्रंथों में इन योगों के बिस्तृत बिबरण देखे जा सकते हैं ।)

बिधबा योग – स्त्री की कुण्डली के अष्टम भाब में ग्रह स्थित होना शुभ नहीं होते । स्त्री की कुण्डली में 2, 4, 7, 8, 12 बें भाब में मंगल हो । राहु 7, 8, 12बें भाब में अथबा मंगल की राशि में स्थित हो । 6, 8बें भाब में चन्द्रमा हो । ऊँच के सूर्य अथबा मंगल । अथबा 7 बें भाब में हो यह योग स्त्री की कुण्डली में घोर अरिष्ट अर्थात दुर्योग योग बनता है ।

ब्यभीचारी योग – चन्द्र, शनि तथा मंगल का सप्तमभाब में एकत्रित होना पति – पत्नी दोनों को ब्यभीचारी बना देता है । सप्तम भाब में मिथुन राशि का शुक्र स्त्री को ब्यभीचारी बनाता है ।

नि: संतान योग – सप्तम भाब में 4, 8, 12बें राशि में शुक्र हो तथा लग्न में शनि हो । मंगल तथा शनि छठे भाब में जलीय राशि में स्थित हों तो स्त्री बाँझ होती है ।

स्त्री –पुरुष कलेश योग – सप्तम में शनि तथा मंगल की एक साथ दृष्टि अथबा युति हो । सातबें में राहु पाप ग्रह से दृष्ट हो । लग्नेश तथा सप्तमेश परस्पर शत्रु हों । सप्तमेश पापबर्ग में स्थित हो, यह अरिष्ट अर्थात दुर्योग के कारण उनके बिबाहित जीबन कंटकमय हो जाता है ।

गर्भपात योग – पंचम भाब पर राहु तथा मंगल अथबा सूर्य तथा मंगल की दृष्टि हो । पंचम भाब में पाप ग्रह स्थित हो तथा अष्टम भाब में मंगल हो । पंचम भाब का मंगल शनि से दृष्ट हो तो अरिष्ट अर्थात दुर्योग योग के कारण बार बार गर्भपात होता है , संतान सुख से बंचित होना पड़ता है ।

मन्दबुद्धि योग – यदि पंचम भाब का स्वामी 4, 8 अथबा 12बें भाब में स्थित हो । पंचमेश बुध तथा गुरु से युक्त होकर 1, 4, 5, 7, 9, 10 बें भाब में हो ।

कुलदीपक योग – यदि 1, 4, 7 अथबा 10 बें भाब में बलबान गुरु हो तथा लग्न में शुक्र तथा बुध स्थित हों ।

अपयश योग – कोई अशुभ ग्रह लग्न का स्वामी होकर लग्न अथबा दसबें भाब में स्थित हो ।

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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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Acharya Pradip Kumar is renowned as one of India's foremost astrologers, combining decades of experience with profound knowledge of traditional Vedic astrology, tantra, mantra, and spiritual sciences. His analytical approach and accurate predictions have earned him a distinguished reputation among clients seeking astrological guidance.

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