सुखी दांपत्य जीवन हेतु करें कुंभ विवाह :

सुखी दांपत्य जीवन हेतु करें कुंभ विवाह :

कुंभ विवाह : यदि कन्या की कुंडली में ‘मंगल दोष’, ‘वैधव्य दोष’ या ‘विष योग’ हो तो उपचार है कुंभ विवाह । यदि कन्या की कुंडली में वैधव्य, संबंध विच्छेद अथवा बहुविवाह योग हो तो उसका समाधान अनिवार्य है । इसी प्रकार कन्या की कुंडली में वैधव्य योग भी विचारणीय है ।
1. जिस कन्या की कुंडली में सप्तम भाव में मंगल पाप ग्रहों से युक्त हो तथा पाप ग्रह सप्तम भाव में स्थित मंगल को देखते हों तो बाल विधवा योग होता है ।
2. लग्न एवं सप्तम भाव में पाप ग्रह हो तो ‘वैधव्य योग’ होता है ।
3. सप्तम भाव में पापग्रह हो तथा चंद्रमा षष्ठ या सप्तम भाव में हो तो वैधव्य योग होता है ।
4. पाप ग्रह से दृष्ट पाप ग्रह अष्टम में हो तो वैधव्य योग होता है ।
5. सप्तमेश एवं अष्टमेश पाप ग्रहों से पीडि़त होकर षष्ठ या द्वादश भाव में हो तो वैधव्य योग होता है ।
इत्यादि जितने भी वैधव्य कारक अरिष्ट योग, जैसे कि मांगलिक दोष या विषकन्या दोष-इन सभी से दूषित कन्या के सुखी दांपत्य हेतु शास्त्रों में कुंभ विवाह का परामर्श दिया हुआ है ।
‘बालवैधव्ययोगे तु कुंभ दुपतिमाादिभि:। कृत्वा लग्न तत: प्रश्चात् कन्योद्वाह्योति चापरे’, अर्थात- घट विवाह के उपरांत ही विवाह करें । कुंभ विवाह की प्रक्रिया विवाह के ही शुभ मुहूर्त में (कुंभ विवाह की घोषित तिथि से पहले कभी भी) शुभ लग्न के समय कन्या के सुखी और स्थाई दांपत्य जीवन हेतु विष्णु रूप कुंभ विवाह करा लें । इस प्रक्रिया में गणपति, पुण्याहवाचन कुल देवता का पूजन कर ग्रह शांति करें। पुन: शाखोच्चार के साथ विष्णु रूप कलश का षोडशोपचार से पूजन करें और फिर उसी कलश की अग्नि सहित कन्या सात परिक्रमा करे, ब्राह्मण मंगलाष्टक का पाठ करें, तदुपरानत कन्या का अभिषेक कर आशीर्वाद दें । इस प्रकार शास्त्र विधि पूर्वक ‘घट विवाह’ करने से वह कन्या सुखी एवं सौभाग्यशालिनी हो जाती है ।
ज्ञातव्य है कि परमपुरुष परमात्मा विष्णु सब के पति हैं, अस्तु विष्णु से विवाह होने के कारण उक्त दोष का शमन हो जाता है । विवाह के पश्चात कन्या विवाह के समय पहने वस्त्राभूषण को परित्याग दे। अर्थात उक्त वस्त्राभूषण को धारण न करे ।

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जय माँ कामाख्या

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