जन्मकुंडली के अनुसार जानिए क्यों होता है गर्भपात :
गर्भपात : ज्योतिषशास्त्र में रोग और उसके प्रभाव का अध्यन मूल रूप से किया जात है कि मनुष्य को कब और किस प्रकार की बीमारी से जूझना पड़ जाय तथा कब उसे मुक्ति मिलेगी अथवा मिल पाएगी या नहीं, रोगों की प्रकृति जातक के अवस्थाएँ जैसे – बाल अवस्था युवा अवस्था , या वृद्ध अवस्था में उसकी गंभीरता आदि ज्योतिषशास्त्र से संबन्धित प्रिय प्रश्न बने रहते हैं । इसलिए यदि कोई जातक जीवन के किसी भी पड़ाव में किसी ऐसे रोग से ग्रसित हो जाए जहां पर कोई भी उपचार व्यर्थ सिद्ध हो रहा हो तो ऐसे में उसे भटकने की बजाय अपनी जन्मकुंडली के ग्रह दशाओं तथा योगों का अध्ययन कर उससे मार्ग निर्देशन जरूर प्राप्त करना चाहिए । ज्योतिषशास्त्र की सूक्ष्मता मनुष्यों में भी दो वर्ग जो नर और नारी के श्रेणीकरण पर आधारित है । यानि स्त्री रोगों के लिए अलग से काफी काम हुआ है तथा इससे किसी स्त्री विशेष को किस तरह से कोई रोग पीड़ित करेगा इस पर प्रकाश डाला जा सकता है ।
हिस्टिरिया (मिर्गी) , बेहोशी में पड़ जाना , शारीरिक अशक्तता, स्त्री को ही होने वाले रोग ल्यूकोरिया ( स्त्री गुप्त रोग ) आदि ज्यादातर ग्रहीय समस्याओं की उपज हैं ।
अनुभव से यही देखने में आता है कि स्त्रियों के ज्यादातर रोग पीड़ित चंद्रमा, लग्न, लग्नेश और लग्न के कारक के पीड़ित होने, तथा चंद्रमा पर पाप व क्रूर ग्रहों की दृष्टि, मंगल-शनि युति-दृष्टि, छठे भाव की कमजोरी से जन्म लेते हैं । ऐसे में स्त्री विशेष की जन्म कुंडली का गहन परीक्षण करने के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है ।
स्त्रियां स्वभावतः संवेदनशील होती हैं, जिसका प्रमुख कारण चंद्रमा है जो कि स्त्री का प्रतिनिधि योग कारक ग्रह है । किंतु जिस भी स्त्री का योग कारक चंद्रमा पाप प्रभाव से युक्त हो या अशुभ दृष्टि से युक्त तथा बलहीन हो, द्वादश, अष्टम, अथवा छठे भाव में मौज़ूद हो, तो ऐसे में उसकी संवेदनशीलता का स्तर नकारात्मक रूप से प्रभावित होने लगता है । यानि कमजोर या पीड़ित चंद्र की अवस्था मानसिक उन्माद पैदा करती है ।
जन्मकुंडली के अनुसार यदि चंद्रमा क्रूर व पापी ग्रहों जैसे शनि, मंगल, राहु, केतु आदि से पीड़ित हो रहा हो तो स्त्री को मासिक धर्म और गर्भपात सम्बन्धी बाधाओं का सामना करना पड़ता है । ऐसे ग्रहीय संयोग मानसिक उत्ताप, चिंता, अवसाद, चिड़चिड़ापन, क्रोध आदि लक्षण को खुलकर सामने लाते हैं । यदि स्त्री की कुण्डली में शनि और मंगल का सम्बंध उपस्थित होने के साथ ही उन पर क्रूर व पापी ग्रहों की दृष्टि भी पड़ रही हो, तो अवश्य ही गंभीर रक्त विकार उत्पन्न होता है ।
स्त्री की कुण्डली में सबसे महत्वपूर्ण बात यदि पंचम भाव पर पाप और क्रूर ग्रहों की दृष्टि या युति है या यदि पंचम भाव पर सूर्य, शनि, राहु, केतु अथवा मंगल का प्रभाव मौज़ूद हो तो ऐसी स्थिति में उस स्त्री को गर्भपात कि समस्या उत्पन्न होती है किंतु इससे भी बड़ी बाधा तब उत्पन्न होती है जबकि गर्भ धारण के बाद गर्भपात का भय बन जाय ऐसा तब होता है जब सूर्य की युति एवं शनि, राहु, केतु की पांचवें भाव पर दृष्टि हो तो । यदि आपके जन्मकुंडली मे गर्भपात योग है या आप इस परिस्थिति से गुजर रहे हों तो आप जन्मकुंडली से शीघ्र इसका निवारण कर सकते हैं । और संतान उत्पत्ति से संबन्धित परेशानियों से बच सकते हैं ।
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जय माँ कामाख्या
Acharya Pradip Kumar is a renowned astrologer known for his expertise in astrology and powerful tantra mantra remedies. His holistic approach and spiritual sadhana guide clients on journeys of self-discovery and empowerment, providing personalized support to find clarity and solutions to life’s challenges.