अचूक रोग निवारक झाड़ा मंत्र :

अचूक रोग निवारक झाड़ा मंत्र :

आयुर्वेद में मंत्रों और जड़ी-बूटियों का महत्व हमेशा से रहा है। इस लेख में चर्चा करेंगे “अचुक रोग निबारक झाड़ा मंत्र “ के बारे में  जो एक अद्वितीय और प्राचीन उपाय है । भारतीय परंपरा में यह झाड़ा मंत्र का एक महत्वपूर्ण स्थान है और बहुत से लोग इसका अनुसरण करते हैं।

झाड़ा मंत्र का महत्व:

झाड़ा मंत्र आपके घर को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है और शांति को बढ़ावा देता है। इसके अलावा, यह आपको स्वस्थ रखने और रोगों से बचाने में मदद करता है।

झाड़ा मंत्र कैसे करें :

झाड़ा मंत्र का इस्तेमाल करने के लिए आपको निम्नलिखित निर्देशों का पालन करना होगा:

साफ स्थान चुनें: पहले, एक स्वच्छ स्थान चुनें जहां आप मंत्र पढ़ सकेंगे।

झाड़ा चुनें: आप अपने मंत्र के लिए एक झाड़ा चुनें।

ध्यानपूर्वक पढ़ें: झाड़ू को आधारित ऊर्जा देने के लिए मंत्र को ध्यान से पढ़ें और मनन करें।

झाड़ू का इस्तेमाल करें: मंत्र पढ़ते समय झाड़ू दिशाओं में घुमाएँ।

झाड़ा मंत्र का उपयोग :

स्वास्थ्य को सुधारने और रोगों से बचने के लिए झाड़ा मंत्र का उपयोग किया जा सकता है। यह उपाय शांति और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है, जो घर को सुंदर बनाता है।

पीलिया रोग झाड़ा मंत्र :

मंत्र : “ॐ यो यो हनुमन्त फलफलित धग्धगिति आयुराष परुडाह ।”
प्रत्येक मंगलवार को व्रत रखकर इस मंत्र का २५ माला जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है । इस मंत्र के द्वारा पीलिया रोग को झाड़ा जा सकता है ।

विष निवारण मंत्र :

मंत्र : “ॐ पश्चिम-मुखाय-गरुडासनाय पंचमुखहनुमते नमः मं मं मं मं मं, सकल विषहराय स्वाहा ।”
इस मन्त्र की जप संख्या १० हजार है, इसकी साधना दीपावली की अर्द्ध-रात्रि पर करनी चाहिए । यह मन्त्र विष निवारण में अत्यधिक सहायक है ।

ग्रह-दोष निवारण मंत्र :

मंत्र : “ॐ उत्तरमुखाय आदि वराहाय लं लं लं लं लं सी हं सी हं नील-कण्ठ-मूर्तये लक्ष्मणप्राणदात्रे वीरहनुमते लंकोपदहनाय सकल सम्पत्ति-कराय पुत्र-पौत्रद्यभीष्ट-कराय ॐ नमः स्वाहा ।”
इस मन्त्र का उपयोग महामारी, अमंगल एवं ग्रह-दोष निवारण के लिए है ।

भूत-प्रेत दोष निवारण मंत्र :

मंत्र : “ॐ श्री महाञ्जनाय पवन-पुत्र-वेशयावेशय ॐ श्रीहनुमते फट् ।”
यह २५ अक्षरों का मन्त्र है इसके ऋषि ब्रह्मा, छन्द गायत्री, देवता हनुमानजी, बीज श्री और शक्ति फट् बताई गई है । छः दीर्घ स्वरों से युक्त बीज से षडङ्गन्यास करने का विधान है । इस मन्त्र का ध्यान इस प्रकार है –
आञ्जनेयं पाटलास्यं स्वर्णाद्रिसमविग्रहम् ।
परिजातद्रुमूलस्थं चिन्तयेत् साधकोत्तम् ।। (नारद पुराण ७५-१०२)
इस प्रकार ध्यान करते हुए साधक को एक लाख जप करना चाहिए । तिल, शक्कर और घी से दशांश हवन करें और श्री हनुमान जी का पूजन करें । यह मंत्र ग्रह-दोष निवारण, भूत-प्रेत दोष निवारण में अत्यधिक उपयोगी है।

उदररोग नाशक मंत्र :

मंत्र : “ॐ यो यो हनुमंत फलफलित धग्धगित आयुराषः परुडाह ।”
उक्त मन्त्र को प्रतिदिन ११ बार पढ़ने से सब तरह के पेट के रोग शांत हो जाते हैं ।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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