नक्षत्रों के कारण रोग प्रभाव और अवधि

१. कृत्तिका नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा नौ रात तक बनी रहती है ।
२. रोहणी नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा तीन रात तक बनी रहती है ।
३. मृगशिरा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा पांच रात तक बनी रहती है ।
४. आर्द्रा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा प्राण-वियोगनी हो जाती है ।
५. पुनर्वसु नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा सात रात तक बनी रहती है ।
६. पुष्य नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा सात रात तक बनी रहती है ।
७. आश्लेषा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा नौ रात तक बनी रहती है ।
८. मघा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा बीस दिन तक बनी रहती है.
९. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा दो माह तक बनी रहती है ।
१०. उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा तीन पक्ष (४५ दिन) तक बनी रहती है ।
११. हस्त नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा स्वल्पकालिक होती है ।
१२. चित्रा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा आधे मास तक बनी रहती है.
१३. स्वाति नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा दो मास तक बनी रहती है ।
१४. विशाखा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा बीस दिन तक बनी रहती है।
१५. अनुराधा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा दस दिन तक बनी रहती है ।
१६. ज्येष्ठा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा आधे मास तक बनी रहती है ।
१७. मूल नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो मृत्यु हो जाती है ।
१८. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा पंद्रह दिन तक बनी रहती है ।
१९. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा बीस दिन तक बनी रहती है ।
२०. श्रवण नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा दो मास तक बनी रहती है ।
२१. धनिष्ठा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा आधा मास तक बनी रहती है ।
२२. शतभिषा नक्षत्रों में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा दस दिन तक बनी रहती है ।
२३. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रों र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा नौ दिन तक बनी रहती है ।
२४. उत्तराभाद्रपद नक्षत्रों में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा पंद्रह दिन तक बनी रहती है ।
२५. रेवती नक्षत्रों में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा दस दिन तक बनी रहती है ।
२६. अश्विनी नक्षत्रों में कोई व्याधि होती है तो एक दिन-रात कष्ट होता है ।
२७. भरणी नक्षत्रों में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा सात दिन तक बनी रहती है ।
रोग के प्रारम्भिक नक्षत्र का ज्ञान हो जाने पर उस नक्षत्र के अधिदेवता के निमित्त निर्दिष्ट द्रव्यों द्वारा हवन करने से रोग-व्याधि की शान्ति हो जाती ह । व्याधि नक्षत्र के किस चरण में उत्पन्न हुई है, इसका ठीक पता लगा आकर आपत्तिजनक स्थितियों में व्याधि से मुक्ति के लिये उस नक्षत्र के स्वामी के मन्त्रों से अभीष्ट समिधा द्वारा हवन करना चाहिये ।
विशेष : ज्योतिषग्रंथो के अनुसार आर्द्रा, आश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा और पूर्वाभाद्रपद में मृत्यु का भय होता है या बीमारी स्थिर हो जाती है. अतः इनकी निवृत्ति के लिये तत्तद् मन्त्र आदि का जप-हवन करना चाहिए .

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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार- 9937207157/ 9438741641 (call/ whatsapp)

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