वैवाहिक जीवन में तनाव या बाधा के मुख्य कारण :
वैवाहिक जीवन : विवाह हमारे पारम्परिक सोलह संस्कारों में से एक है, जीवन के एक पड़ाव को पार करके किशोरा वस्था से युवास्था में प्रवेश करने के बाद व्यक्ति को जीवनयापन और सामाजिक ढांचे में ढलने के लिए एक अच्छे जीवन साथी की आवश्यकता होती है और जीवन कीपूर्णता के लिए यह आवश्यक भी है ।
परन्तु हमारे जीवन में सभी चीजें सही स्थिति और सही समय पर हमें प्राप्त हो ऐसा आवश्यक नहीं है इसमें आपके भाग्य की पूरी भूमिका होती है और जन्मकुंडली इसी भाग्य का प्रतिरूप होती है ।
जहाँ बहुत से लोगो का वैवाहिक जीवन शांति और सुखमय व्यतीत होता है वहीं बहुत बार देखने को मिलता है के व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में हमेशा तनाव और संघर्ष की स्थिति बनी रहती है ।
आपस में वाद विवाद या किसी ना किसी बात को लेकर वैवाहिक जीवन में उतार चढ़ाव की स्थिती बनी ही रहती है ऐसा वास्तव में व्यक्ति की जन्मकुंडली में बने कुछ विशेष ग्रह योगों के कारण ही होता है आई ये इसे ज्योतिषीय दृष्टिकोण से जानते हैं ।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण में हमारी कुंडली का “सप्तम भाव” विवाह का भाव होता है अतः हमारे जीवन में विवाह, वैवाहिक जीवन, पति, पत्नी आदि का सुख सप्तम भाव और सप्तमेश (सातवें भाव का स्वामी) की स्थिति पर निर्भर करता है ।
इसके आलावा पुरुषों की कुंडली में“शुक्र” विवाह, वैवाहिक जीवन और पत्नी का नैसर्गिक कारक होता है तथा स्त्री की कुंडली में विवाह, वैवाहिक जीवन और पति सुख को “मंगल” और“बृहस्पति” नियंत्रित करते हैं ।
अतः जब किसी व्यक्ति की कुंडली में वैवाहिक जीवन को नियंत्रित करने वाले ये घटक कमजोर या पीड़ित स्थिति में हो तो वैवाहिक जीवन में बार बार तनाव, वाद–विवाद या उतार चढ़ाव की स्थिति बनती है ।
बिबाह जीवन में संघर्ष के कुछ विशेष ग्रहयोग –यदि कुंडली के सप्तम भाव में कोई पाप योग
गुरु– (चांडाल योग, ग्रहण योग अंगारक योग आदि) बना हुआ हो तो बिबाह जीवन में तनाव और बाधाएं उपस्थित होती हैं ।
यदि सप्तम भाव में कोई पापग्रह नीच राशि में बैठा हो तो बिबाह जीवन में संघर्ष की स्थिति बनती है ।
राहु– केतु का सप्तम भाव में शत्रु राशि में होना भी बिबाह जीवन में तनाव का कारण बनता है ।
यदि सप्तम भाव के आगे और पीछे दोनों और और पाप ग्रह होतो यह भी बिबाह जीवन में बाधा यें उत्पन्न करता है ।
सप्तमेश का पाप भाव (6,8,12) में बैठना या नीच राशि में होना भी बिबाह जीवन में उतार चढ़ाव का कारण बनता है ।
पुरुष की कुंडली में शुक्र नीच राशि (कन्या) में हो, केतु के साथ हो, सूर्य से अस्त हो, अष्टम भाव में हो या अन्य किसी प्रकार पीड़ित हो तो बिबाह जीवन में तनाव और संघर्ष उत्पन्न होता है ।
स्त्री की कुंडली में मंगल नीच राशि (कर्क) में हो, राहु शनि से पीड़ित हो बृहस्पति नीचस्थ हो राहु से पीड़ित हो तो बिबाह जीवन में बाधा यें और वाद विवाद उत्पन्न होते हैं ।
पाप भाव (6,8,12) के स्वामी यदि सप्तम भाव में हो तो भी बिबाहित जीवन में विलम्ब और बाधाएं आती हैं ।
सप्तम में शत्रु राशि या नीचराशि (तुला) में बैठा सूर्य भी बिबाहित जीवन में बाधायें और संघर्ष देता है ।
विशेष –
यदि पीड़ित सप्तमेश, सप्तमभाव, शुक्र और मंगल पर बृहस्पति की शुभ दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसे में बिबाहित जीवन की समस्याएं अधिक बड़ा रूप नहीं लेती और उनका कोई ना कोई समाधान व्यक्ति को मिल जाता है ।
बिबाह जीवन की समस्यायें अधिक नकारात्मक स्थिति में तभी होती हैं जब कुंडली में बिबाह जीवन के सभी घटक पीड़ित और कमजोर हो और शुभ प्रभाव से वंछित हों । बिबाह जीवन में यदि तनाव या संघर्ष की स्थिति हो तो इसके पीछे कुंडली में बने कुछ विशेष ग्रहयोग तो होते ही है ।
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जय माँ कामाख्या