शाबर शत्रुस्तम्भिनि प्रयोगों :
शाबर शत्रुस्तम्भिनि : प्रस्तुत समय एक ऐसा समय है जहां पर व्यक्ति स्वार्थ के वशीभूत हो कर किसी के लिए भी अहित करने के लिए तैयार हो जाते है । कई बार यह देखने में आया है की परिवार के निकट का सबंधी व्यक्ति या रिश्तेदार ही अपने स्वार्थ के लिए एक क्षण में ही शत्रुता को ही अपना आधार बना लेते है । इसके अलावा अच्छे मित्र भी समय आने पर मुह मोड कर शत्रु बन जाते है तथा विविध कारणों से व्यक्ति का अहित करने के लिए नाना प्रकार के हिन् कार्यों को अंजाम देते है । कई बार व्यापर के क्षेत्र में अनबन के कारण या फिर अपने कार्य क्षेत्र में भी किसी विशेष द्वेष आदि के कारण या समाज में भी अगर आदर्श आचरण और सिद्धांत की महत्वपूर्णता को संजोये हुवे कोई निति पूर्वक जीवन व्यतीत करता है तो भी उसके कई प्रकार के अमानवीय प्रवृति वाले व्यक्ति शत्रु बन जाते है । यह एक बहोत ही पेचीदा स्थिति है । एक नज़रिए से देखा जाए तो हम इसका निराकरण किसी न किसी प्रकार से कर ही सकते है लेकिन यहाँ पर यह तथ्य ध्यान देने योग्य है की यह तभी संभव हो सकता है जब हमें ज्ञात हो की शत्रु कौन है । लेकिन तब क्या किया जा सकता है जब हमें पता ही नहीं हो की शत्रु कौन है । अज्ञात शत्रु द्वेष भाव को अपने अंदर संजोये हुवे होते है और मौका देखते ही व्यक्ति के जीवन को छिन्नभिन्न करने के लिए कार्यरत हो जाते है । एसी स्थिति में व्यक्ति का व्यथित होना स्वाभाविक है, हर तरफ से घात के क्षणों में जब यह भी ज्ञात न हो की शत्रु कौन है तब व्यक्ति को साधना का सहारा लेना अनिवार्य ही है । स्वयं की रक्षा हेतु तथा परिवारजानो की सुरक्षा हेतु अगर तंत्र का सहारा लिया जाए तो निश्चय ही साधक का अहित करने की क्षमता किसमे है, शत्रु चाहे कितना भी बलवान हो लेकिन दैवीय शक्तियों के सामने वह एक तिनके सामान भी कहाँ है ।
तंत्र के शत्रु स्तम्भन प्रयोगों में शाबर प्रयोगों का महत्त्व अपने आप में ही अत्यधिक है । यह शाबर शत्रुस्तम्भिनि मंत्र अत्यधिक सरल से प्रतीत होते है तथा इसमें विधि विधान आदि बहोत सहज होते है । भगवती कालरात्रि का तो स्वरुप ही निराला है, अत्यधिक भयावह और डरावना उनका स्वरुप वस्तुतः साधक के लिए नहीं वरन उसके शत्रुओ के लिए है । साधक के लिए तो वह मातृतुल्य है । जहां एक तरफ वात्सल्य आशीर्वाद के साथ वह साधक के जीवन में उन्नति तथा सुख भोग प्रदान करती है वहीँ दूसरी तरफ वह साक्षात् दुर्गा स्वरुप में अपने साधक के सभी ज्ञात और अज्ञात शत्रुओ की गति मति का स्तम्भन कर साधक के अहित करने वाले सभी व्यक्तियो का उच्चाटन करती है । भगवती से सबंधित कई प्रकार के प्रयोग है जिसमे ज्यादातर उग्र और स्मशानिक विद्धान है जिसे करना सरल नहीं है लेकिन प्रस्तुत शाबर शत्रुस्तम्भिनि प्रयोग सहज प्रयोग है जिसे कोई भी व्यक्ति सम्प्पन कर सकता है । एक ही रात्री में साधक यह प्रयोग पूर्ण कर लेने पर उसको भगवती का आशीर्वाद प्राप्त होता है तथा उसके शत्रुओ से सुरक्षा प्राप्त होती है । साथ ही साथ जीवन के सभी पक्षों में उसे उन्नति प्राप्त होती है ।
यह शाबर शत्रुस्तम्भिनि प्रयोग साधक कृष्ण पक्ष की सप्तमी को करे. समय रात्री में १० बजे के बाद का रहे ।
साधक को स्नान आदि से निवृत हो कर लाल वस्त्र को धारण करना चाहिए तथा लाल आसान पर उत्तर दिश की तरफ मुख कर बैठना चाहिए ।
अपने सामने बाजोट पर साधक भगवती कालरात्रि का चित्र स्थापित करे । तथा गुरुपूजन, गणेशपूजन, भैरवपूजन और देवी कालरात्रि का पूजन सम्प्पन करे । इसके बाद श्रद्धानुसार कोई भी रक्षाकवच का पाठ कर गुरु मंत्र का जाप करे । साधक इस शाबर शत्रुस्तम्भिनि प्रयोग में तेल का दीपक ही लगाए । जब तक मंत्रजाप हो रहा है तब तक दीपक जलते रहना चाहिए, इस हेतु साधक को ध्यान रखना चाहिए तथा इस प्रकार की व्यवस्था साधक पहले से ही कर ले । अगर दीपक मन्त्रजाप के समय बुज जाए तो साधना खंडित मानी जाती है । साधक भोग के लिए किसी फल को अर्पण करे लेकिन खट्टे फल का उपयोग न करे । उसके बाद साधक निम्न शाबर शत्रुस्तम्भिनि मन्त्र का २१ माला मंत्र जाप पूर्ण करे । यह जाप साधक को रुद्राक्ष की माला या मूंगा माला से करना चाहिए ।
शाबर शत्रुस्तम्भिनि मंत्र – “ॐ नमो कालरात्रि शत्रुस्तम्भिनि त्रिशूलधारिणी नमः”
जाप पूर्ण हो जाने पर साधक देवी को श्रद्धाभाव से प्रणाम करे तथा शत्रुओ से मुक्ति के लिए तथा स्वयं की रक्षा हेतु प्रार्थना करे । साधक को दूसरे दिन किसी छोटी कन्या को भोज कराना चाहिए या वस्त्र दक्षिणा समर्पित करना चाहिए । माला का विसर्जन नहीं करना है, साधक भविष्य में भी इस माला का प्रयोग इस शाबर शत्रुस्तम्भिनि मन्त्र जाप हेतु कर सकता है ।
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जय माँ कामाख्या