Sursundari Yogini Sadhana Kaise Kare ?
योगिनियों की उत्पति भगबती महाकाली के स्वेदकन्णों से मानी गई है । घोर नामक महादैत्य का बध करने के लिए भगबती महादेबी (गौरी) ने महाकाली का स्वरुप धारण किया था । उस समय दैत्यराज का बध करते समय भगबती महाकाली के शरीर से जो स्वेद बिंदु नीचे गिरे, ऊन्हीं के द्वारा करोड़ों योगिनियों की उत्पति हुई थी । ये सभी योगिनयाँ भगबती महाकाली के अंश से उत्पन्न होने के कारण उन्हीं के समान सामर्थबान एबं अपने भक्तो की मनोभिलाषाओं की पूर्ति करने बाली हैं । निर्मल योगिनियों में कुछ बिशिष्ट गुणों एबं क्षमताओं का समाबेश भी माना गया है ।
सुरसुन्दरी योगिनी जगत्प्रिया है । उनका मुख चन्द्रमा के सामान सुन्दर तथा शरीर गौरबर्ण है । बे बिचित्र में सुसज्जित तथा उन्नत स्तनों बाली सब को अभय प्रदान करती है । मैं ऐसी पीठ देबी का आबाहन और ध्यान करता हूँ । उक्त प्रकार से ध्यान करके मूलमंत्र द्वारा देबी का पूजन करें तथा घृत, दीप, नैबेद्य, गन्ध, चन्दन एबं ताम्बूल निबेदन करें । फिर प्रतिदिन तीनों संध्याकाल में ध्यान करके मंत्र का एक एक सहस्र की संख्या में जप करें ।
Sursundari Yogini Sadhana Mantra :
“ॐ ह्रीं आगच्छ सुरसुन्दरी स्वाहा ।”
Sursundari Yogini Sadhana Vidhi :
प्रात:काल शय्या से उठकर शौच, स्नान तथा संध्या बन्दन करने के उपरान्त “ह्रीं” इस मंत्र द्वारा आचमन कर, “ॐ हुं फट् इस मंत्र द्वारा दिगबन्धन कर, पुर्बोक्त मूल मंत्र से प्राणायाम करें । तत्पश्चात “ह्रां” अन्गुष्ठाभ्यां नम:” इत्यादि क्रम से “करांगन्यास” एबं “ह्रीं” मंत्र से “षडन्गंन्यास करें” ।
फिर भोजपत्र के ऊपर कुंकुम से एक अष्टदल कमल अंकित कर उस पद्म में देबी की प्राण प्रतिष्ठा करके, पीठ देबता का आबाहन कर, सुरसुन्दरी योगिनी का ध्यान और मंत्र का जप करें ।
सुरसुन्दरी योगिनी साधना (Sursundari Yogini Sadhana) बिधि बिधान से एक मास तक नित्य जप करके महीने के अंतिम दिन बलि आदि बिबिध उपहारों द्वारा देबी का पूजन करें । जप की पूर्णता पर “सुरसुन्दरी योगिनी” अर्द्धरात्रि के समय साधक के घर प्रकट होती है । उस समय साधक पुनर्बार बिधि बिधान से उनका पूजन करे तथा उत्तम चन्दन से सुशोभित पुष्प प्रदान कर, उनसे अभिलाषित बर देने की माँग करें ।
चेताबनी : भारतीय संस्कृति में मंत्र तंत्र यन्त्र साधना का बिशेष महत्व है । परन्तु यदि किसी साधक यंहा दी गयी साधना (Sursundari Yogini Sadhana) के प्रयोग में बिधिबत, बस्तुगत अशुद्धता अथबा त्रुटी के कारण किसी भी प्रकार की कलेश्जनक हानि होती है, अथबा कोई अनिष्ट होता है, तो इसका उत्तरदायित्व स्वयं उसी का होगा । उसके लिए उत्तरदायी हम नहीं होंगे । अत: कोई भी प्रयोग योग्य ब्यक्ति या जानकरी बिद्वान से ही करे। यंहा सिर्फ जानकारी के लिए दिया गया है । हर समस्या का समाधान केलिए आप हमें इस नो. पर सम्पर्क कर सकते हैं : 9438741641 (call/ whatsapp)