कुण्डली में ऊपरी बाधा योग क्या होता है और इसका उपाय कैसे करें ?

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कुण्डली में ऊपरी बाधा योग और इसका उपाय :

कुण्डली में ऊपरी बाधा योग : आज इस लेख में हम चर्चा करेंगे , कुण्डली में ऊपरी बाधा योग क्या होता है और इसका उपाय क्या है । हम सब सानते है जीवन और मृत्यु का शाश्वत चक्र अनादि काल से अस्तित्व में है। जीवन के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जीवन की इस सतत् प्रक्रिया के मध्य कुछ अवकाश रह जाता है और इसी रिक्त स्थान में अशरीरी आत्माओं अर्थात् भूत-प्रेत, पिशाचादि के रूप में भी जीवात्मा कुछ काल व्यतीत करता है। इस काल का निर्धारण मृत्यु के प्रकार से होता है। अर्थात् यदि मृत्यु प्राकृतिक रूप से हुई हो तथा अन्त्येष्टि क्रिया पूर्ण विधि- विधान साथ हुई हो तो यह कालावधि काफी कम होता है जबकि अकाल मृत्यु (दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या, सद्यःमृत्यु आदि ) होने तथा अन्त्येष्टि आदि की प्रक्रिया में त्रुटि के कारण प्रेतशरीर के रूप में जीवन की अवधि काफी लम्बी हो जाती है।
सूक्ष्म शरीर तथा पञ्चमहाभूतों से मानव शरीर बना है तथा मृत्यु के उपरान्त अन्त्येष्टि क्रियाओं (अग्निदाह, भूमि में दबाना, जल प्रवाह) के कारण स्थूल शरीर का तो नाश हो जाता है परन्तु सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व बना रहता है। यही सूक्ष्म शरीर अपनी अतृप्त वासनाओं के कारण प्रेत शरीर को प्राप्त करती है। स्थूल शरीर तथा इन्द्रियों के अभाव के कारण ये आत्माएँ अपनी अधूरी इच्छाओं की पूर्ति स्वयमेव नहीं कर पाती है और यही कारण है कि वे किसी अन्य जीवित मानव शरीर में प्रवेश कर अपनी अपूर्ण इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करती हैं और यही स्थिति प्रेतबाधा कही जाती है। प्रेतबाधा के तो वैसे कई कारण हंि परन्तु सर्वप्रमुख कारण अशुचिता, आत्मबल की कमी, कमजोर मनःस्थिति, भीरूता आदि हैं। यही कारण है कि बच्चे तथा स्त्री (विशेष रूप से ऋतुकाल तथा गर्भावस्था) प्रेतबाधा के शिकार अधिक होते हैं। प्रत्येक रोग के समान ही प्रेतबाधा या ऊपर बाधा के भी दो कारण हैं-
(1)आन्तरिक कारण, तथा
(2)बाह्य कारण
आन्तरिक कारण के अन्तर्गत शारीरिक दुर्बलता, अस्वस्थता, संकल्पहीनता, इच्छाशक्ति का अभाव, व्यसन, व्यभिचार, कुण्ठा, अपूर्ण या दमित इच्छाएँ, पूर्वजन्मों के कर्मफल का परिपाक आदि आती हैं। जबकि बाह्य कारणों में मृत व्यक्ति का अपमान, प्रेतग्रस्त व्यक्ति का उपहास, श्मशान-कब्रिस्तान आदि में मल-मूत्र का त्याग, प्रेतबाधा ग्रस्त मकान में निवास, प्रेतबाधा ग्रस्त व्यक्ति से शारीरिक संबंध बनाना, किसी के द्वारा प्रेरित अभिचार कर्म, सन्ध्याकाल में संभोग, चौराहे पर रात्रिकाल में अकेले घूमना, रजस्वला स्त्री से सम्पर्क, ग्रहण काल, नग्न स्नान-शयन आदि करना, धार्मिक कर्म अथवा पूजन कर्म में व्यतिक्रम आदि अनेक कारण शामिल हैं। किसी व्यक्ति पर प्रेतात्मा के आक्रमण करने की प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार किसी के घर पर बलपूर्वक अधिकार जमाना। किसी और के घर पर बलपूर्वक अधिकार का प्रयास करने के क्रम में उस घर में पहले से रहने वाले व्यक्ति जिस प्रकार विरोध करते हैं ठीक उसी प्रकार प्रेतों के आवेश के समय भी मानव शरीर में स्थित सूक्ष्म शरीर द्वारा भी विरोध किया जाता है। परन्तु यदि प्रेतात्मा अधिक बलशाली हुई और मनुष्य मानसिक तथा इच्छाशक्ति के आधार पर कमजोर हुआ तो प्रेतात्मा उस शरीर पर अपना अधिकार जमा लेती है और अपनी अपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति उस मानव के इन्द्रियों (कर्मेन्द्रिय तथा ज्ञानेन्द्रियों) द्वारा करती है। इनके अतिरिक्त कई अन्य देव योनियाँ भी हैं जो अनेक कारणों से मनुष्य को पीडि़त करती हैं और यह भी ऊपरी बाधा की ही श्रेणी में आता है।
* सूर्य- ब्रह्मराक्षस
* चन्द्र- बालग्रह(दुर्गा, आयुर्वेद, शास्त्रोक्त भूत ग्रह, किन्नर, यक्षिणी)
* मंगल- राक्षस, गन्धर्व
* बुध- गन्धर्व
* गुरु- विद्याधर, यक्ष,किन्नर,सर्पयोगिनी,
* शुक्र- यक्षिणी,मातृगण,पूतना
* शनि- पिशाच,प्रेत, निकृष्ट आत्मा
* राहु- पिशाच,प्रेत,जिन्न
* केतु- प्रेत,भूत

कुण्डली में ऊपरी बाधा योग निम्नलिखित भाब से देखा गया है –

* नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो तो कुण्डली में ऊपरी बाधा योग देखने को मिलता है ।
* पञ्चम भाव में सूर्य तथा शनि हो, निर्बल चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तथा बृहस्पति बारहवें भाव में हो इस स्तिति में कुण्डली में ऊपरी बाधा योग बनता है ।
* जन्म समय चन्द्रग्रहण हो और लग्न, पञ्चम तथा नवम भाव में पाप ग्रह हों तो जन्मकाल से ही पिशाच बाधा का भय होता है जीसको कुण्डली में कुण्डली में ऊपरी बाधा योग कहा जाता है ।
* षष्ठ भाव में पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट राहु तथा केतु की स्थिति भी पैशाचिक बाधा उत्पन्न करती है।
* लग्न में शनि, राहु की युति हो अथवा दोनों में से कोई भी एक ग्रह स्थित हो अथवा लग्नस्थ राहु पर शनि की दृष्टि हो तो कुण्डली में ऊपरी बाधा योग बनता है ।
* लग्नस्थ केतु पर कई पाप ग्रहों की दृष्टि हो कुण्डली में ऊपरी बाधा योग बन जाता है ।
* निर्बल चन्द्रमा शनि के साथ अष्टम में हो तो पिशाच, भूत-प्रेत, मशान आदि का भय रहता है ।
* निर्बल चन्द्रमा षष्ठ अथवा बारहवें भाव में मंगल, राहु या केतु के साथ हो तो भी पिशाच भय रहता है ।
* चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) के लग्न पर यदि षष्ठेश की दृष्टि हो तो कुण्डली में ऊपरी बाधा योग बनता है ।
* एकादश भाव में मंगल हो तथा नवम भाव में स्थिर राशि (वृष, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) और सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि (मिथुन, कन्या, धनु, मीन) हो तो कुण्डली में ऊपरी बाधा योग बनता है ।
* लग्न भाव मंगल से दृष्ट हो तथा षष्ठेश, दशम, सप्तम या लग्न भाव में स्थित हों तो कुण्डली में ऊपरी बाधा योग बनता है ।
* मंगल यदि लग्नेश के साथ केन्द्र या लग्न भाव में स्थित हो तथा छठे भाव का स्वामी लग्नस्थ हो।
* पापग्रहों से युक्त या दृष्ट केतु लग्नगत हो।
* शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई भी एक ग्रह सप्तम स्थान में हो।
* जब लग्न में चन्द्रमा के साथ राहु हो और त्रिकोण भावों में क्रूर ग्रह हों।
* अष्टम भाव में शनि के साथ निर्बल चन्द्रमा स्थित हो।
* राहु, शनि से युक्त होकर लग्न में स्थित हो।
* लग्नेश एवं राहु अपनी नीच राशि का होकर अष्टम भाव या अष्टमेश से संबंध करे।
* राहु नीच राशि का होकर अष्टम भाव में हो तथा लग्नेश, शनि के साथ द्वादश भाव में स्थित हो।
* द्वितीय में राहु, द्वादश में शनि, षष्ठ में चन्द्र तथा लग्नेश भी अशुभ भावों में हो।
* चन्द्रमा तथा राहु दोनों ही नीच राशि के होकर अष्टम भाव में हो।
* चतुर्थ भाव में उच्च का राहु हो, वक्री मंगल द्वादश भाव में हो तथा अमावस्या तिथि का जन्म हो।
* नीचस्थ सूर्य के साथ केतु हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो तथा लग्नेश भी बीच राशि का हो।

कुण्डली में ऊपरी बाधा योग उपाय :

जिन जातकों की कुण्डली में उपरोक्त योग हों, उन्हें विशेष सावधानीपूर्वक रहना चाहिए तथा संयमित जीवन शैली का आश्रय ग्रहण करना चाहिए। जिन बाह्य परिस्थितियों के कारण प्रेत बाधा का प्रकोप होता है उनसे विशेष रूप से बचें। अधोलिखित उपाय भी जातक को प्रेतबाधा से मुक्त रखने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं –
* शारीरिक शुचिता के साथ-साथ मानसिक पवित्रता का भी ध्यान रखें।
* नित्य हनुमान चालीसा तथा बजरङ्ग बाण का पाठ करें।
* मंगलवार का व्रत रखें तथा सुंदरकाण्ड का पाठ करें।
* पुखराज रत्न से प्रेतात्माएँ दूर भागती हैं, अतः पुखराज रत्न धारण करें।
* घर में नित्य शंख बजाएँ।
* नित्य गायत्री मन्त्र की एक माला का जाप करें।
* रामचरितमानस की चौपाई –
‘मामभिरक्षय रघुकुलनायक।
धृत वर चाप रूचिर कर सायक।।’
अथवा
‘प्रनवऊँ पवन कुमार खलबल पावक ग्यान धन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सरचाप धर।।’
से हवन सामग्री की 108 आहुतियाँ देकर इसे सिद्ध कर लें और आवश्यकता पड़ने पर तीन बार पढ़ें, सभी प्रकार की बुरी आत्माओं से रक्षा होती है।
* रक्षा-सूत्र अवश्य धारण करें।
* चौंसठिया यन्त्र को मंगलवार के दिन भोजपत्र पर अष्टगंध अथवा रक्त चन्दन की स्याही और अनार की कलम से लिखें। इस यन्त्र को प्रत्येक कमरे में स्थापित करें तथा ताबीज के रूप में गले या बाजू में धारण करें। अनुभूत तथा सिद्ध प्रयोग है।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार- 9438741641 ( Call/ Whatsapp)

Acharya Pradip Kumar is one of the best-known and renowned astrologers, known for his expertise in astrology and powerful tantra mantra remedies. His holistic approach and spiritual sadhana guide clients on journeys of self-discovery and empowerment, providing personalized support to find clarity and solutions to life's challenges.

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