Dakini Pratyakshikaran Shabar Mantra :
तंत्र में काली को भी डाकिनी कहा जाता है, यद्यपि डाकिनी काली की शक्ति के अंतर्गत आने वाली एक अति उग्र शक्ति है । यह काली की उग्रता का प्रतिनिधित्व करती हैं और इनका स्थान मूलाधार के ठीक बीच में माना जाता है । यह प्रकृति की सर्वाधिक उग्र शक्ति है । यह समस्त विध्वंश और विनाश की मूल हैं । इन्ही के कारण काली को अति उग्र देवी कहा जाता है । जबकि काली सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति की भी मूल देवी हैं । तंत्र में डाकिनी प्रत्यक्षीकरण (Dakini Pratyakshikaran) की साधना स्वतंत्र रूप से होती है और यदि डाकिनी प्रत्यक्षीकरण (Dakini Pratyakshikaran) सिद्ध हो जाए तो काली की सिद्धि करना आसान हो जाता है ।
काली की सिद्धि अर्थात मूलाधार की सिद्धि, काली या डाकिनी प्रत्यक्षीकरण सिद्धी (Dakini Pratyakshikaran Siddhi) से अन्य चक्र अथवा अन्य देवी-देवता आसानी से सिद्ध किया जा सकता हैं फीर उसके लीये कठीन साधना करने की जरूरत नही होती । कम प्रयासों में ही डाकिनी प्रत्यक्षीकरण सिद्धी (Dakini Pratyakshikaran Siddhi) प्राप्त हो जाती है, इस प्रकार सर्वाधिक कठिन डाकिनी नामक काली की शक्ति की सिद्धि ही है । डाकिनी नामक देवी की साधना अघोरपंथी तांत्रिकों की प्रसिद्द साधना है, हमारे अन्दर क्रूरता, क्रोध, अतिशय हिंसात्मक भाव, नख और बाल आदि की उत्पत्ति डाकिनी की शक्ति के तरंगों से होती है । डाकिनी प्रत्यक्षीकरण (Dakini Pratyakshikaran) की सिद्धि या शक्ति से भूत-भविष्य-वर्त्तमान जानने की क्षमता आ जाती है । किसी को नियंत्रित करने की क्षमता, वशीभूत करने की क्षमता आ जाती है । यह शक्ति साधक की रक्षा करती है और मार्गदर्शन भी करती है । यह डाकिनी साधक के सामने लगभग काली के ही रूप में अवतरित होती है ।
इसका स्वरुप अति उग्र हो जाता है । इस रूप में माधुर्य, कोमलताका अभाव होता है, डाकिनी प्रत्यक्षीकरण सिद्धि के समय यह पहले साधक की ये बहुत परीक्षा लेती है, साधक को हर तरीके से आजमाती है, उसे डराती भी है । फिर तरह तरह के मोहक रूपों में साधक को भोग के लिए प्रेरित करती है, यद्यपि मूल रूप से यह उग्र और क्रूर शक्ति है इसलिए बिना रक्षा कवच धारण किये डाकिनी प्रत्यक्षीकरण साधना ना करे । इसके भय और प्रलोभन से साधक बच गया तो डाकिनी प्रत्यक्षीकरण सिद्धि (Dakini Pratyakshikaran Siddhi) का मार्ग आसान हो जाता है । मस्तिष्क को शून्य कर के या पूर्ण विवेक को त्यागकर निर्मल भाव में डूबकर ही डाकिनी प्रत्यक्षीकरण साधना पुर्ण किया जा सकता है । डाकिनी और काली में व्यावहारिक अंतर है, जबकि यह शक्ति काली के अंतर्गत ही आती है । इस शक्ति को जगाना अति आवश्यक है , जबकि काली एक जाग्रत देवी शक्ति हैं । डाकिनी प्रत्यक्षीकरण (Dakini Pratyakshikaran) की साधना में कामभाव की पूर्णतया वर्ज होता है । तंत्र में एक और डाकिनी की साधना होती है जो अधिकतर वाममार्ग में साधित होती है ।
यह डाकिनी प्रकृति की ऋणात्मक ऊर्जा से उत्पन्न एक स्थायी गुण है और निश्चित आकृति में दिखाई देती है । इसका स्वरुप सुन्दर और मोहक होता है ,यह पृथ्वी पर स्वतंत्र शक्ति के रूप में पाई जाती है । इसकी साधना अघोरियों और कापालिकों में अति प्रचलित है । यह बहुत शक्तिशाली शक्ति है और सिद्ध हो जाने पर साधक का मार्ग आसान हो जाता है । यद्यपि साधना में थोड़ी सी चूक होने अथवा साधक के साधना समय में थोडा सा भी कमजोर पड़ने पर वह शक्ति साधक को ख़त्म कर देती है , यह भूत-प्रेत- पिशाच-ब्रह्म-जिन्न आदि उन्नत शक्ति होती है । यह कभी-कभी खुद किसी पर कृपा कर सकती है और कभी किसी पर स्वयमेव आसक्त भी हो जाती है । इसके आसक्त होने पर सब काम रुक जाता है और उसका विनास होने लगता है । इसका स्वरुप एक सुन्दर, गौरवर्णीय, तीखे नाकनक्शे वाली युवती की जैसी होती है । जो काले कपडे में ही अधिकतर दिखती है ।
काशी के तंत्र जगत में इसकी साधना, विचरण और प्रभाव का विवरण ग्रंथो में मिलता है । इस शक्ति को केवल वशीभूत किया जा सकता है । इसको नष्ट नहीं किया जा सकता, यह सदैव व्याप्त रहने वाली शक्ति है । जो व्यक्ति विशेष के लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी , इसे नकारात्मक नहीं कहा जा सकता , अपितु यह ऋणात्मक शक्ति ही होती है । सामान्यतया यह नदी-सरोवर के किनारों, घाटों, शमशानों, तंत्र पीठों, एकांत साधना स्थलों आदि पर विचरण कर हैं ।
इस में मंत्र जाप हेतु रुद्राक्ष माला का प्रयोग करे,काला आसन हो और मुख दक्षिण दिशा में होना चाहिए ।
Dakini Pratyakshikaran Shabar Mantra :
मन्त्र: ।। ॐ नमो आदेश गुरु को स्यार की ख़वासिनी समंदर पार धाइ आव, बैठी हो तो आव-ठाडी हो तो ठाडी आव-जलती आ-उछलती आ न आये डाकनी,तो जालंधर बाबा कि आन शब्द साँचा पिंड कांचा फुरे मन्त्र ईश्वरो वाचा छू ।।
Dakini Pratyakshikaran Vidhi :
यह एक प्रत्यक्षीकरण की साधना है ,किसी एकांत स्थान पर जहां चौराहा हो वहां पर रात के समय कुछ मास मदिरा व मिट्टी क दीपक, सरसों का तेल व सरसों लेकर जाय । काले आसन पर बैठकर नग्न होकर मन्त्र का ११ माला जप करें, सरसों के तेल का दीपक जला कर रख लें । अब हाथ में सरसों लेकर मन्त्र पढ़कर चारोँ दिशाओं में फेंक दें और दोबारा से मन्त्र जपना आरम्भ करें, मन में संकल्प रखें कि डाकिनी शीघ्र आकर दर्शन दे तो कुछ हि देर में दौडती-चिल्लाती और उछलती डाकनियां आ जायेँगी,उनको शराब और मास प्रदान करना है और जो भी मन मे हो वह मनोवांछित कार्य उनको बोल देना है,कार्य तुरंत पूर्ण होता है ।
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जय माँ कामाख्या