अघोर घोर नाशक मंत्र

Aghor Ghor Nashak Mantra :

यह अघोर घोर नाशक मंत्र (Aghor Ghor Nashak Mantra) महाबिद्या के नाम से प्रसिद्ध है । इस बिधान में भगबान शंकर के “बामदेब” आदि प्रसिद्ध नामों से स्थडीत अथबा लिंग में पूजन किया जाता है । “सिद्ध शंकर तंत्र” में अघोर घोर नाशक मंत्र (Aghor Ghor Nashak Mantra) महाबिद्या घोरेश्वरी के मंत्र तथा साधनाबिधि के बिषय में निचे लिखे अनुसार कहा गया है ।

Aghor Ghor Nashak Mantra is Prakar Hai ….

मंत्र : “अघोरेशी ह्रीं हुं फट् ।।”

यह भगबान शंकर की घोरेश्वरी महाबिद्या का अघोर घोर नाशक महामंत्र (Aghor Ghor Nashak Mantra) है । जो ब्यक्ति इसका बिधिबत् साधन करता है, उसकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं ।

Aghor Ghor Nashak Mantra Sadhna Vidhi : 

स्नानोपरान्त किसी गुप्त, एकांत तथा शांत स्थान में एकाग्रचित से बैठकर पहले अंगन्यास तथा करन्यास करना चाहिए ।

“ह्रीं” इस बीच से “षडंनान्यास” करना चाहिए । चार सहस्र रेफाकार अनुस्वार से ह्रदय, बक्षयमाण चार अक्षरों से मस्तक “हुं थोर घोरतरेभय:” – इनके शिखा तथा “ओं है सर्बत: सर्बभ्य:” – इन अक्षरों से कबच न्यास करना चाहिए ।

“नमस्ते रूद्ररिपेभ्य:” – इन आठ अक्षरों से “नत्रत्रयाय बौष्ट” – करन्यास करे तथा “फट्” नियुक्त करे इस प्रकार अंगन्यास करके मंत्र रूप का न्यास करना चाहिए ।

शिब जैसा स्वरुप बना, जटा मुकुट धारण कर “बामदेब ज्येष्ठ तथा रूद्ररूप” के हेतु नमस्कार है । बल बिकरण रूप के हेतु नमस्कार है । बल –प्रमथन रूप के हेतु नमस्कार है तथा सब सब भूतो का दमन करने बाले मनोन्मन रूप के हेतु नमस्कार है – इस प्रकार कहें ।

सर्बांग में समस्त अलंकार को धारण कर, मस्तक पर अर्द्धचन्द्र को स्थित करें । फिर पुष्प, धूप तथा चन्दन से अपने शरीर को लिप्त कर, स्थडीत अथबा लिंग में पूजन करे ।

“ॐ ह्रां हृदयाय नम:” – इस मंत्र से ह्रदय को आग्नेय दिशाये ॐ ह्रीं अघोरेभ्य: शिरसे स्वाहा” – इस मंत्र से शिर को ईशान दिया में “ॐ हं घोर घोर तरेभ्य: शिखायै बष्ट” –इस मंत्र से शिखा को नैरुत दिशा में “ॐ हैं सर्बत: सर्बेभ्य: कबचाय नम:” इस मंत्र से कबच को बायब्य दिशा में “ॐ ह्रौं नमस्ते रूद्ररुपेभ्यों नेत्राभ्यां बष्ट” – इस मंत्र से नेत्र के ऊपरी भाग में तथा “ॐ हं: अस्त्राय फट्” – इस मंत्र से अस्त्र का चारों दिशाओं में न्यास करें ।

उक्त प्रकार से बिधिपूर्बक न्यास के उपरान्त ह्रीं इस कला से युक्त अघोर का ह्रदय में पूजन कर, उसके मध्य में घोरेश्वरी देबी की पूजन करें । फिर पुर्बोक्त घोरेश्वरी मंत्र का जप करते समय मुण्डमाला, चार भुजाओं, भाल दृष्टि एबं त्रिशूल धारण करने बाले, अभयप्रद, त्रिलोचन, अर्द्धयनुधर शिबजी का ध्यान करने से समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं ।

जो साधक पबित्र, अपबित्र –किसी भी अबस्था में प्रतिदिन शंकर का पूजन कर, पुर्बोक्त (अघोर घोर नाशक मंत्र Aghor Ghor Nashak Mantra) घोरेश्वरी मंत्र का जप करके एक लाख बिल्व पत्र से हबन करता है बह शिबजी को प्रत्यक्ष प्राप्त कर लेता हैं । जो ब्यक्ति मंत्रोचारण सहित एक लाख कमलों से पूजन करके हबन करता है, बह अणिमादि सिद्धियों को प्राप्त कर, शिबजी के अनुग्रह से जरा – मृत्यु रहित अभीष्ट लोक को प्राप्त करता है । जो ब्यक्ति श्रीपत्र तथा गुग्गल की गुटिका बनाकर बिधिपूर्बक जप तथा हबन करता है । उसे पाताललोक तक में सिद्धि प्राप्त होती है । जो ब्यक्ति हर समय इस मंत्र का जप करता रहता है, उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं ।

उक्त मंत्रोचारण के साथ तिल होम करने से गुह्णीडादि उपद्र्ब नष्ट होते हैं । घृत तथा शर्करा का होम करने से आयु की बृद्धि होती हैं । दूध बाले (बरगद आदि) बृक्ष की समिधा द्वारा होम करने से समृद्धि प्राप्त होती है ।

घोरेश्वरी देबी का निरूतरण जप तथा पूजन करने बाले ब्यक्ति को अघोर देब की भाँती पूजन करने से दूना फल प्राप्त होता है तथा साधक जिन दुर्लभ कामनाओं की इच्छा करता है, बे सब घोरेश्वरी देबी की कृपा से सफल होती है । केबल जप तथा होमार्चन से ही इस देबी के अनुष्ठान में सिद्धि प्राप्त हो जाती है । अन्य किसी बिशेष नियम की आबश्यकता नहीं है ।

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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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