अघोर साधना तंत्र की औघड सिद्धि

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Aghor Sadhna Tantra Ki Aughad Siddhi :

।। औघड साधना सिद्धि मंत्र ।। “ओम् बीर भुतनाथाय औघड महेश्वराय रक्ष-रक्ष हुं हुं फट्।।”

Aghor Sadhna Vidhi :

साधकों यह प्राचीन गोपनीय औघड साधना (Aghor Sadhna) है जो सिद्ध औघड पंथ के महात्मादि करते हैं जो सदा ही शमशान तथा भूत-प्रेतों के साथ ब बीच में रहना पसन्द करते हैं । यह शैब एबं शाक्त दोनों ही मतों के साधक होते हैं । इनमें कुछ ही भीन्नता होती है । अधिकतर नियम एबं बिधानादि मिलते-जुलते ही पाये जाते हैं । इनमें कपाली, औघड, अघोरी, नगा (दिगम्बर) आदि नामो से जाने जाते हैं । ये भैरब, काली, शिब, श्मशान ब भूत प्रेत आदि के साधक पाये जाते हैं । इनके अलाबा अप्सरा-यखिणी, योगिनी, अघोरा, बीर,कामाख्या, तारा, छिनमास्ता, धुमाबती, कर्णपिशाचिनी, श्मशान भैरबी आदि की सिद्धियाँ एबं अघोर साधना (Aghor Sadhna) इस प्रकार के सिद्ध साधक ही कर पाते हैं जो अघोर पंथ, काली कुल, औघड-पंथ एबं बाममार्गी ये सभी उंचकोटि कि सिद्धियाँ हैं । जो साधारण मनुष्य एबं साधक के लिये करना कठिन एबं हानिकारक कही जाती हैं । ये सभी दिब्य एबं तामसिक अघोर साधना (Aghor Sadhna) सिद्धियाँ है जो कि जितनी लाभकारी मानी जाती है उतनी ही गलती होने पर बिनाश्कारी भी साबित होती है ।
 
इन सिद्धियों को करने के लिये सिद्ध गुरु की शरण जाकर अघोर साधना (Aghor Sadhna) की सम्पूर्ण जानकारी और गुप्त रहस्यों को समझना अतिआबश्यक है । इसके उपरांत क्रम से दीक्षायें ली जाती है । एक के बाद एक अघोर साधना (Aghor Sadhna) करते रहना पडता है । जैसे-जैसे सफलता मिलती है । बैसे ही क्रमपूर्बक आगे बढना चाहिये और कई छोटी-मोटी साधना सम्पन्न करने के बाद ही दशमहाबिद्या एबं उपरोक्त उग्र साधना गुरुदेब बताते हैं और साधक को कई परिख्यायें देनी पडती है । अपनी योग्यता, बिबेक, एकाग्रता आदि से जीत हासिल करने के उपरान्त ही गुरु देब अपने शिष्यों को बडी अघोर साधना (Aghor Sadhna) एबं गुप्त ज्ञान तथा बिद्या प्रदान करते हैं ।
 
हम सीधे सातबें मंजिल की और छलांग लगाते है । उसका परिणाम तो हमे भुगताना ही पडता है । हमें ऊपर चडने के लिये सीढियों को एक-एक करके पार करते हुये ऊपर चढना चाहिये तो सायद हम कभी नहीं गिरेंगे ना ही हमे कोई चोट लगने का खतरा होगा । लेकिन हम सोचते है कि सातबीं मंजिल चढनी है और हजारों सिढिया कब चढेंगे और कब पहुचेंगे । फिर अपना दिमाग लगाते हैं कि चलो ना सीधे ही सातबीं मंजिल के ऊपर पहुंच जायें । ऐसा मार्ग तलाशें जिससे इतनी मेहनत न करनी पडे और हाथ-पांब और शरीर को कष्ट न सहना पडे । इसी चालाकी और लालच में सीधे मंजिल पर चढने जायेंगे और ऐसे गिरेंगे जिससे कभी दुबारा उठेंगे भी नहीं और उठ भी गये तो मंजिल पे तो कया चढे लेकिन पंलग पे भी नहीं चढ पाते यही हाल साधक की गलती ब जल्दबाजी की बजह से होती है । ऐसी घटनायें कई के साथ हो चुकी है और होती रहती है ।
 
कयोंकी श्मशान और धुमाबती या दशमहाबिद्या की साधना अन्तिम साधनायें है और साधक प्रथम बार मे सिद्धियाँ करने बैठ जाते हैं तो फिर आगे बताये गये सातबें माले की भांति नीचे ही गिरेंगे । क्योंकी सीधे बिना सीढी के ऊपर चडने बालों के साथ तो ऐसा होना कोई बडी बात नहीं हैं । साधकों अब आप समझ गये होंगे की हमें पहली कख्या से पढाई करते-करते पास होकर बारहबीं कख्या और कोंलेज तक पहुंचना है । न कि कोंलेज से तीसरी कख्या में बापिस आना । इसी भांति बिद्या एबं साधना के खेत्र में भी क्रम दिये गये हैं । उसी के अनुसार आगे बढा जाता है ।
 
उसका निर्णय तो गुरु और अध्यापक करता है न कि साधक और बिद्यार्थी । हमें नियमों में रहना है ना कि नियमों को और बिधान को अपनी इछा और मर्जी से चलाना । आज के साधको बिधान को भी बदल देते है । लेकिन इससे साधकों का ही समय बरबाद होता है किसी गुरु या शास्त्र का नहीं । गुरु और शास्त्र हमें कभी रोकने नहीं आयेंगे कि शिष्य तुमने जप कम कयों किया या आज तुम स्नान किये बिना ही साधना (Aghor Sadhna) करने क्यों बैठ गये । आज सुबह की बजाय दोपहर में पाठ क्यों कर रहे हो आदि-आदि गलतियां करने पर गुरु आपके पास नहीं बैठे होंगे जो आपको रोकें और समझाबें । ये तो साधक को स्वयं को ही सोचना और बिचार करना है । साधकको गुरु के द्वारा बताये गये नियम और बिधान को ध्यान में रखते हुए साधना (Aghor Sadhna) करोगे तभी हमे सफलता मिलेगी क्योंकी बिना नियम पालन के तो किसी भी कार्य में सफलता हाँसिल हो ही नहीं सकती । नियमों का पालन और बताये गये बिधान को करना हि तो साधना है । जब यही नहीं करेंगे तो फिर हमें कैसे लाभ मिलेगा । इसलिये जिस प्रयोग में जैसा पालन ब बिधि बताई गयी हो उसी के अनुसार साधना करनी चाहिये, तभी सिद्धि प्राप्त होती है । अब उपरोक्त मंत्र की साधना बिधि इस तरह से है :-
 
साधको इस साधना को औघड पंथ के महात्मा और सिद्ध साधक अपनी सुरक्षा हेतु करते हैं । क्योंकि सर्बप्रथम रक्षा की साधनायें करनी पडती हैं । जब हम किसी भी प्रयोग या तंत्र सिद्धि करना चाहते हैं तो सबसे पहले रक्षा मंत्र की साधना करनी चाहिये । फिर बाकी अनुष्ठान करें। उपरोक्त औघड साधना मंत्र (Aghor Sadhna Mantra) को औघड पंथ के साधक सबसे पहले सिद्ध करके इसके उपरान्त ही दूसरी साधनायें (Aghor Sadhna) आरम्भ करते हैं । ये औघड मंत्र को एक बार सिद्ध कर लेने से फिर जीबनभर औघड साधकों की रक्षा करता है ।
 
इस मंत्र को दीपाबली की रात्रि में या बर्ष की किसी सोमबती अमाबस्या की रात्रि मे सिद्ध करना पडता है । साधक अपनी सुरक्षा का प्रबंध करके अमाबस्या की रात्रि में 11 बजे अपरांत किसी श्मशान भूमि पर जाकर चिता की ताजी भस्म लाकर फिर उसको लेकर किसी एकांत जंगल, खेत ब सुनसान जगह पर बेठ जायें और उस भस्म से शिबलिंग बनाबें । फिर उसे अपने सामने स्थापित करें। साधक अपना मुख पशिचम की और रखें । फिर उस शिबलिंग पर ध्यान केन्द्रित करके भग्बान शिब महाकाल के महारोद्र स्वरुप का स्मरण करते हुये उपरोक्त अघोर साधना मंत्र (Aghor Sadhna Mantra) का जाप शुरु करे और रात्रि 11 बजे से आरम्भ करके सुबह प्रात: काल तक लगातर जप करें तो औघड मंत्र की सिद्धि प्राप्त होती है । फिर श्मशान की कोई भी औघड पंथ की क्रिया या तंत्र प्र्योग करते समय इस मंत्र के उपचारण करने से रक्षा होती है । इस साधना (Aghor Sadhna) को साल में आने बाली सौमबती अमाबस्या को भी किया जा सकता है । ये एक दिन का ही प्रयोग है, लेकिन गुरु के सानिध्य में ही करें। यही उचित होगा कयोंकी साधक ने कोई जाने-अनजाने में त्रुटि या गलती कर दी तो परिणाम उल्टा हो सकता है तथा श्मशान में से भस्म लाते समय समस्या उत्पन्न हो सकती है । यह एक तंत्रप्रयोग है, इसमे साबधानी रखनी जरुरी हैं।
 
नोट : घर-परिबार बाले साधक एबं साधारण साधकों को ये प्रयोग नहीं करना चाहिये ये प्रयोग अघोरियों के लिये उचित और उपयोगी भी उनके लिये ही माना जाता है । हमारे जैसे साधारण मनुष्यों के लिये ठीक नहीं है । क्योंकी ये हम जैसो के बश का काम नहीं है और हमें इसके बारे में कोई ज्ञान नहीं होता, जो जानता है उसी के लिये आसान है । सबके कार्य अलग-अलग हैं । हमारा काम हम ही कर सकते हैं कोई दुसरा नहीं कर सकता । ठीक उसी भांति सिद्ध साधक और अघोरी आदि का कार्य और सिद्धियाँ बे औघड ही कर पाते हैं । हम नहीं कर सकते । जिसका रात-दिन का कार्य होता है, उसी को करना चाहिये ।
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जय माँ कामाख्या

Acharya Pradip Kumar is one of the best-known and renowned astrologers, known for his expertise in astrology and powerful tantra mantra remedies. His holistic approach and spiritual sadhana guide clients on journeys of self-discovery and empowerment, providing personalized support to find clarity and solutions to life's challenges.

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