Agni Sadhna Kaise Kare ?
अग्नि मीले पुरोहित यज्ञस्य देबमृत्विजम ।होतारं रत्नधात्म्म्।
अग्नि पुर्बोमि ऋषिमिरीडयो नुतनैरुत ।स देबो सह बक्षति।
अग्निनां रयियशनबत् पोषमेब दिबेदिबे। यशस बीरबत्मम्।
अग्नेय यझमध्वरं बिश्वत: परिभूरासि । स इदेबेशु गछति ।
अग्निर्होता कबिक्रतु: सत्यशिच्चत्रश्रबस्तम:। देबो देबेभिरागतम् ।।
Agni Sadhna yagna Samagri :
शुद्ध घृत, शुभ ब्रुक्ष्यो की लकडिया (आक ,बेल,चिडचिड़ि ,अनार ,आम ,शमी आदि ,दूब, तिल, जौ ,चाबल (आखा), धूप ,दही ,गुग्गुल ,चन्दन , रक्त , जल (ताम्रपात्र में) अग्नि बर्न के आसन एबं बस्त्र , फूल आदि ।
Agni Sadhna Yagna Vidhi :
संध्या से पहले ही इक्क्यासी बर्ग हाथ को स्वच्छ करके उसे गोबर ,मिट्टी की चारों तरफ छह फुट उंची , चार फुट चौड़ी मेढ बनाकर घेर दे ।इसे गाय के गोबर से लीप कर आग्नेय कोण में सबा हाथ भुजा बाली (बर्गाकार) बेदी कोण पर पूरब दिशा की तरफ इस प्रकार से बनायें की उसके पशिचम आसन बिछाने और पूजा /यज्ञ सामग्री रखने के बाद भी सब कुछ नो बर्ग हाथ में समाप्त हो जाये। बेदी को भूमि पर ही निर्मित करें। अन्य उपाय श्रेयस्कर नहीं है । भूमि की मेढ़ पर चाबल या जौ के आटे, सिन्दूर ,तुलसी , जल को पढ़ते हुए छिड़के ।
अब प्रात: काल ब्रह्ममुहूर्त (तीन बजे) में सभी प्रकार से पबित्र होकर बेदी के निकट आसन को बिछाकर सभी यज्ञ सामग्री रख लें तथा पूरब दिशा की तरफ मुख करके सुखासन में बैठ जायें । त्तपश्चात गाय के कंडे चिंगारी से सुलगाये । इस समय मंत्र को पढ़ते रहे । जब अग्नि सुलग जाये तब उसे ध्यान लगाकर प्रणाम करें और थोड़ी लकड़ी डालकर त्राटक में ध्यान लगाकर अग्निशिखा पर ध्यान केन्द्रित करें और मंत्र जाप करते हुए हबन /यन्त्र सामग्री थोडा थोड़ा हबन कुण्ड (बेदी में) डालते जायें । यह क्रिया एक सौ आठ बार होनी आबश्यक है, फिर अग्नि देब को प्रणाम करके शेष बची यज्ञ सामग्री को बेदी में डाल दे । इस क्रिया के मध्य आबश्यकता के अनुरूप डालते जाये । यह साधना एक सौ आठ दिन में सिद्धि हो जाती है ।
यज्ञ सामग्री में चिडचिडी, आक, बेल ,औषधिया ,अनार ,आम ,शमी आदि की लकड़ियां भी डाली जाती है । ये सभी उपलब्ध हो , तो सही है । यदि उपलब्ध न हों तो एक ही प्रकार की लकड़ी से बिधि करनी चाहिए । ध्यान को अग्नि की लपटों को तेज पर केन्द्रित करके एकाग्रचित रखना चाहिए । इसकी सिद्धि में यही प्रमुख त्वत होते हैं।
Agni Sadhna Siddhi Phal :
अग्निसिद्धि एक सौ आठ दिन में होती है । समय अधिक भी लग सकता है । अग्नि साधना (Agni Sadhna) का फल अबर्णनीय है । कांति, पराक्रम ,तेज ,दृष्टिबल ,आभा ,चेतना की सबलता तो पहले दिन ही अनुभब में आने लगती है । इसकी सिद्धि प्राप्त हो जाने के पश्चात दिब्य सम्मोहन शक्ति और भबिष्यदर्शन की शक्ति प्राप्त होती है ।
ध्यान केंद्र : त्राटक
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