बीर बिरहना की सिद्धि क्या है?

।। Bir Birahna Ki Siddhi Sadhana Mantra ।।

“बीर बिरहना फुल बिरहना धुं धुं सबा सेर का तोसा खाय
अस्सी कोस का धाबा करें। सात सौ कुतक आगे चले सात सौ
कुतक भागे चलें सात सौ कुतक पीछे चलें। छपन सौ छुरी
चले। बाबन सौ बीर चले। जिसमें गड गजनी का पीर चले और
की भूजा उखाडता चले। अपनी भुजा टेकता चले। सूते को
जगाबता चले। बैठे को उठाबता चले। हाथों में हथकडी गेरे,
पैरों में पैर कडा गेरे। हलाल माहीं ढीठ करें। मुरदार माहीं पीठ
करे। बल बान नबी को याद करें। ओम नम: ठ: ठ: स्वाहा।।”
इस बीर बिरहना मंत्र (Bir Birahna Ki Siddhi Mantra) को सूर्यग्रहण के दिन से आरम्भ करे । प्रतिदिन एक माला जप करे । पूजा मे धूप-दीप अगरबती जलाये तथा चमेली के पुष्प और माला चढाबें और नैबेद्य में फल-मिठाई- सबा सेर रोट आदि चढाबें या हलुबा अर्पण करें । इस क्रिया के उपरान्त नित्य ही जप करे, 41 दिन तक यह साधना करें तो अन्तिम दिन में बीर साधक के सामने प्रत्यख्य होगा तब सबा सेर हलुबा और पुष्प माला (चमेली के फुलों की) अर्पण करे और निडर होकर भक्तिभाब से प्रार्थना करे तो बीर प्रसन्न होकर साधक की कामना के अनुसार बर प्रदान करता है । साधक इस बीर बिरहना सिद्धि को जीबन भर काम में ले सकता है । लेकिन सदा धर्म के कार्यो मे प्रयोग करना चाहिये । सत्य के मार्ग पर चलते रहना चाहिये । जिससे सदा ही बीर साथ में रहता है ।
 
कोई भी सिद्धि हो लेकिन कभी अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिये और अपनी सिद्धियों का प्रद्रशन भी नहीं करना चाहिये, इससे साधक की शक्ति कमजोर होती है और अपने इष्ट का प्रद्रशन करने से इष्ट भी नाराज हो जाता हैं तथा हमारी शक्ति खीण होती है ।

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