Brahmastra Vidya Ke Anokha Prayog :
सृष्टि के आदि काल से ही हंसना, रोना, इच्छायें और उनकी पूर्ती में आने वाली बाधायें मनुष्य के लिये चुनौती रहे हैं । कोई धन पाना चाहता है तो कोई मान – सम्मान पाने के लिये परेशान है । किसी को प्रेम चाहिये तो कोई व्यर्थ में ही ईर्ष्या की अग्नि में झुलसा जा रहा है । कोई भोग में अपनी तृप्ति ढूंढ़ता रहा है तो कोई मोक्ष की तलाश में रहा है । अलग – अलग कामनाओं की पूर्ती के लिये दस महाविद्याओं की साधनाओं की परम्परा काफी पुरानी है – काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडषी, मातंगी, त्रिपुरभैरवी, भुवनेश्वरी, बगलामुखी, कमला और धूमावती की उपासना भारत की पुरानी परम्परा है ।
इन दस महाविद्याओं में शत्रु का स्तम्भन करने, शत्रु का नाश करने में बगलामुखी का नाम सबसे ऊपर है । इस देवी का दूसरा नाम पीताम्बरा भी है । इसी विद्या को ब्रह्मास्त्र विद्या (Brahmastra Vidya) कहा जाता है ।
यही है प्राचीन भारत का वह ब्रह्मास्त्र विद्या (Brahmastra Vidya) जो पल भर में सारे विश्व को नष्ट करने में सक्षम था । आज भी इस ब्रह्मास्त्र विद्या का प्रयोग साधक शत्रु की गति का स्तम्भन करने के लिये करते हैं ।
ये वही ब्रह्मास्त्र विद्या (Brahmastra Vidya) है जिसका प्रयोग मेघनाद ने अशोक वाटिका में श्री हनुमान पर किया था ( राम चरित मानस के सुन्दर कांड में इसका उदाहरण है ।[ ब्रह्म अस्त्र तेहि सांधा कपि मन कीन्ह विचार, जो न ब्रह्म सर मानऊ महिमा मिटै अपार ], ये वही ब्रह्मास्त्र विद्या है जिसकी साधना श्रीराम ने रावण को मारने के लिये की थी, ये वही ब्रह्मास्त्र है जिसका प्रयोग महाभारत युद्ध के अंत में कृष्ण द्वैपायन व्यास के आश्रम में अर्जुन और अश्वत्थामा ने एक दूसरे पर किया था और जिसके बचाव में श्री कृष्ण को बीच में आना पड़ा था । ( महाभारत के अंत में ) ये वही सुप्रसिद्ध ब्रह्मास्त्र विद्या (Brahmastra Vidya) है जिसके प्रयोग से कोई बच नहीं सकता । यह बगलामुखी और उनकी शक्ति है ।
तंत्र शास्त्र के अनुसार एक बार एक भीषण तूफ़ान उठा उससे सारे संसार का विनाश होने लगा । इसे देखकर भगवान विष्णु अत्यंत चिंतित हुये । तब उन्होंने श्री विद्या माता त्रिपुर सुंदरी को अपनी तपस्या से संतुष्ट किया । सौराष्ट्र में हरिद्रा नामक सरोवर में जल क्रीड़ा करते हुये संतुष्ट देवी के ह्रदय से एक तेज प्रगट हुआ जो बगलामुखी के नाम से प्रख्यात हुआ । उस दिन चतुर्दशी तिथि थी और मंगलवार का दिन था । पंच मकार से तृप्त देवी के उस तेज ने तूफ़ान को शांत कर दिया । देवी का यह स्वरुप शक्ति के रूप में शत्रु का स्तम्भन करने के मामले में अद्वितीय था । इसलिये इसे ही ब्रह्मास्त्र विद्या (Brahmastra Vidya) कहा जाता है ।
यह तांत्रिक साधना है और तांत्रिक देवी हैं । यह देवी वाममार्ग यानि कौलमत द्वारा पंच मकार यानि मद्द, मांस, मीन, मुद्रा, और मैथुन के द्वारा भी प्रसन्न की जाती है और दक्षिण मार्ग यानि सतोगुणी साधना के द्वारा भी माता की साधना की जाती है ।
मंत्र : ” ॐ ह्लीं बगालामुखिं सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा ”
इस बगलामुखी मन्त्र के नारद ऋषि है, बृहती छंद है, बगलामुखी देवता हैं, ह्लीं बीज है, स्वाहा शक्ति है और सभी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिये इस मन्त्र के जप का विधान है । इस ब्रह्मास्त्र विद्या मंत्र (Brahmastra Vidya Mantra) का पुरश्चरण सवा लाख जप है । चंपा अथवा पीले कनेर के फूलों से बारह हजार पांचा सौ होम करना चाहिये, बारह सौ बार तर्पण करना चाहिये सवा सौ बार मार्जन करना चाहिये और ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये । इससे मन्त्र सिद्ध हो जाता है । जब मन्त्र सिद्ध हो जाये तब प्रयोग करना चाहिये । पुरश्चरण शुरू करने के लिये मंगलवार को जब चतुर्दशी तिथि पड़े तो वह उपयुक्त रहती है । पुरश्चरण के दौरान नित्य बगलामुखी कवच अवश्य पढ़ना चाहिये अन्यथा खुद को ही हानि होती है । बगलामुखी के भैरव त्रयम्बक हैं । पुरश्चरण में दशांश त्रयम्बक मन्त्र अथवा महामृत्युंजय मंत्र अवश्य पढ़ना चाहिये । ये मनुष्य को वह शक्ति धारण करने की पात्रता प्रदान करता है । इस प्रकार छत्तीस पुरश्चरण करने वाले को साक्षात बगलामुखी सिद्ध हो जाती है । तब मनुष्य ब्रह्मास्त्र के प्रयोग के लिये योग्यता प्राप्त कर लेता है ।
उपाय :-
धन प्राप्ति के लिये :-
“महा मत्स्या, महा कूर्मा, महा वाराह रूपिणी ।
नर सिंह प्रिया रम्या वामना वटु रूपिणी ।।”
बागला सिद्ध साधक को इस मन्त्र को मंगलवार से शुरू करके नित्य 36 बार पढ़ने से खूब धन प्राप्त होता है ।
बच्चों का मन पढ़ाई में लगाने के लिये :-
किसी भी महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी से चतुर्दशी तक एक सेब पर छ: बार देवी का यह मन्त्र पढ़ कर बच्चे को खिलाने से उसका भटकाव रुक जाता है और पढ़ाई में उसका मन लगता है । मंत्र अभिमन्त्रण बागला सिद्ध व्यक्ति को करना चाहिए ।
“बुद्धि रूपा, बुद्ध भार्या, बौद्ध – पाखण्ड – खंडिनी ।
कल्कि रूपा कलि हरा, कलि दुर्गति नाशिनी ।।”
जो लोग स्वयं बगलामुखी साधना न कर पायें ,ब्रह्मास्त्र विद्या (Brahmastra Vidya) को न प्राप्त कर सकें ,[क्योंकि इसके लिए जोग्य गुरु की आवश्यकता होती है ,बिना गुरु के यह साधना (Brahmastra Vidya Sadhana) नहीं हो सकती ] वे लोग बगलामुखी यन्त्र भोजपत्र पर सिद्ध बगला साधक से बनवाकर धारण करें तो उन्हें भी अनेकानेक लाभ प्राप्त होते हैं और सर्वांगीण प्रगति के साथ सर्वत्र विजय-सफलता-उन्नति प्राप्त होती है , शत्रु-विरोधी-नकारात्मकता स्वयमेव नष्ट हो जाते हैं ।
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जय माँ कामाख्या