Gopaniya KaalBhairav Sawari Bulane Ka Tantra Vidya :
सवारी आपको तो पता ही होगा क्युके आप लोग अक्सर ये देखते होगे कुछ लोगो मे भैरव का सवारी (KaalBhairav Sawari), हनुमान का सवारी महाकाली जी का सवारी आता है और सवारी आने पर “भगत” (जिस इंसान मे सवारी आता है उसको भगत कहा जाता है ) को जो कुछ पुछा जाये वह उसका सटिक जवाब देता है साथ मे सभी कष्ट, पिडा, बाधा, रोग, समस्याओ से मुक्ती दिलवाता है ।
भगवान भैरव की साधना वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए भैरव साधना की जाती है। भैरव साधना से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। जन्म कुण्डली में छठा भाव शत्रु का भाव होता है। लग्न में षट भाव भी शत्रु का है। इस भाव के अधिपति, भाव में स्थित ग्रह और उनकी दृष्टि से शत्रु सम्बन्धी कष्ट उत्पन्न होते हैं। षष्ठस्थ-षष्ठेश सम्बन्धियों को शत्रु बनाता है। यह शत्रुता कई कारणें से हो सकती है। आपकी प्रगति कभी-कभी दूसरों को.अच्छी नहीं लगती और आपकी प्रगति को प्रभावित करने के लिए तांत्रिक क्रियाओं का सहारा लेकर आपको प्रभावित करते हैं।
तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव से व्यवसाय, धंधे में आशानुरूप प्रगति नहीं होती। दिया हुआ रुपया नहीं लौटता, रोग या विघ्न से आप पीड़ित रहते हैं अथवा बेकार के मुकद्मेबाजी में धन और समय की बर्बादी हो सकती है। इस प्रकार के शत्रु बाधा निवारण के लिए भैरव साधना फलदायी मानी गई। यह KaalBhairav Sawari प्रयोग बालक-वृद्ध, स्त्री-पुरुष किसी पर भी सम्पन्न किया जा सकता है। भगवान भैरव का शाबर तंत्र प्रयोग कोई टोटका नहीं बल्कि शुद्ध तंत्र प्रयोग है जिसका प्रभाव तत्काल रूप से देखा जा सकता है।
‘रुद्रयामल तंत्र’ के अनुसार दस महाविद्याएं और सम्बन्धित भैरव के नाम इस प्रकार हैं-
1. कालिका – महाकाल भैरव
2. त्रिपुर सुन्दरी – ललितेश्वर भैरव
3. तारा – अक्षभ्य भैरव
4. छिन्नमस्ता – विकराल भैरव
5. भुवनेश्वरी – महादेव भैरव
6. धूमावती – काल भैरव
7. कमला – नारायण भैरव
8. भैरवी – बटुक भैरव
9. मातंगी – मतंग भैरव
10. बगलामुखी – मृत्युंजय भैरव
भैरव से सम्बन्धित कई साधनाएं प्राचीन तांत्रिक ग्रंथों में वर्णित हैं, जैन ग्रंथों में भी भैरव के विशिष्ट प्रयोग दिये हैं। प्राचीनकाल से अब तक लगभग सभी,ग्रंथों में एक स्वर से यह स्वीकार किया गया है कि जब तक साधक भैरव साधना सम्पन्न नहीं कर लेता, तब तक उसे अन्य साधनाओं में प्रवेश करने का अधिकार ही नहीं प्राप्त होता।’शिव पुराण’ में भैरव को शिव का ही अवतार माना है तो ‘विष्णु पुराण’ में बताया गया है कि विष्णु के अंश ही भैरव के रूप में विश्व विख्यात हैं, दुर्गा सप्तशती के पाठ के प्रारम्भ और अंत में भी भैरव की उपासना आवश्यक और महत्वपूर्ण मानी जाती है।
भैरव साधना के बारे में लोगों के मानस में काफी भ्रम और भय है, परन्तु यह KaalBhairav Sawari साधना अत्यन्त ही सरल, सौम्य और सुखदायक है, इस प्रकार KaalBhairav Sawari साधना को कोई भी साधक कर सकता है। भैरव साधना के बारे में कुछ मूलभूत तथ्य साधक को जान लेने चाहिये-
1. भैरव साधना सकाम्य साधना है, अतः कामना के साथ ही इस प्रकार की साधना की जानी चाहिए।
2. भैरव साधना मुख्यतः रात्रि में ही सम्पन्न की जाती है।
3. कुछ विशिष्ट वाममार्गी तांत्रिक प्रयोग में ही भैरव को सुरा का नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
4. भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य साधना के अनुरूप बदलता रहता है। मुख्य रूप से भैरव को रविवार को दूध की खीर, सोमवार को मोदक (लड्डू), मंगलवार को घी-गुड़ से बनी हुई लापसी, बुधवार को दही-चिवड़ा, गुरुवार को बेसन के लड्डू,शुक्रवार को भुने हुए चने तथा शनिवार को उड़द के बने हुए पकौड़े का नैवेद्य लगाते हैं, इसके अतिरिक्त जलेबी, सेव, तले हुए पापड़ आदिका नैवेद्य लगाते हैं।
देवताओं ने भैरव की उपासना करते हुए बताया है कि काल की भांति रौद्र होने के कारण ही आप ‘कालराज’ हैं, भीषण होने से आप ‘भैरव’ हैं, मृत्यु भी आप से भयभीत रहती है, अतः आप काल भैरव हैं, दुष्टात्माओं का मर्दन करने में आप सक्षम हैं, इसलिए आपको ‘आमर्दक’ कहा गया है, आप समर्थ हैं और शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले हैं।
साधना (KaalBhairav Sawari) के लिए आवश्यक:-
ऊपर लिखे गये नियमों के अलावा कुछ अन्य नियमों की जानकारी साधक के लिए आवश्यक है, जिनका पालन किये बिना भैरव साधना पूरी नहीं हो पाती।
1. भैरव की पूजा में अर्पित नैवेद्य प्रसाद को उसी स्थान पर पूजा के कुछ समय बाद ग्रहण करना चाहिए, इसे पूजा स्थान से बाहर नहीं ले जाया जा सकता, सम्पूर्ण प्रसाद उसी समय पूर्ण कर देना चाहिए।
2. भैरव साधना में केवल तेल के दीपक का ही प्रयोग किया जाता है, इसके अतिरिक्त गुग्गुल, धूप-अगरबत्ती जलाई जाती है।
3. भैरव चित्र को स्थापित कर साधना क्रम प्रारम्भ करना चाहिए।
4. भैरव साधना में केवल ‘काली हकीकमाला’ का ही प्रयोग किया जाता है।
यह (KaalBhairav Sawari) प्रयोग किसी भी रविवार, मंगलवार अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सम्पन्न किया जा सकता है। भैरव साधना मुख्यतः रात्रि काल में ही सम्पन्न की जाती है परन्तु इस प्रयोग को आप अपनी सुविधानुसार दिन में भी सम्पन्न कर सकते हैं। साधना काल में साधक स्नान कर स्वच्छ लाल वस्त्र धारण कर, दक्षिणाभिमुख होकर बैठ जाए। अपने सामने एक बाजोट पर सर्वप्रथम गीली मिट्टी की ढेरी बनाकर उस पर ‘काल भैरव कंगण’ स्थापित करें। उसके चारों ओर तिल की आठ ढेरियां बना लें तथा प्रत्येक पर एक- एक सुपारी स्थापित करें। बाजोट पर तेल का दीपक प्रज्वलित करें तथा गुग्गल धूप तथा अगरबत्ती जला दें।
सर्वप्रथम निम्न मंत्र बोलकर भैरव का आह्वान करें –
आह्वान मंत्र:-
आयाहि भगवन् रुद्रो भैरवः भैरवीपते।
प्रसन्नोभव देवेश नमस्तुभ्यं कृपानिधि॥
भैरव आह्वान के पश्चात् साधक भैरव का ध्यान करते हुए अपने शरीर मे सवारी (KaalBhairav Sawari) प्राप्त करने हेतु कालभैरव से प्रार्थना करें तथा हाथ में जल लेकर निम्न संकल्प करें-
संकल्प:-
मैं अपने शरीर मे “कालभैरवजी” का सवारी (KaalBhairav Sawari) प्राप्त करने हेतु काल भैरव प्रयोग सम्पन्न कर रहा हूं।
जल को जमीन पर छोड दिजिये और दीये हुए KaalBhairav Sawari शाबर मंत्र का इमानदारी से जाप करे l
ll जय काली कंकाली महाकाली के पुत कालभैरव, हुक्म है-हाजिर रहे,मेरा कहा काज तुरंत करे,काला-भैरव किल-किल करके चली आयी सवारी,इसी पल इसी घडी यही भगत मे रुके,ना रुके तो दुहाई काली माई की, दुहाई कामरू कामाक्षा की,गुरू गोरखनाथ बाबा की आण,छु वाचापुरी ll
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जय माँ कामाख्या