कामाक्षायाष्टक

कामाख्याष्ट्क एक भक्तिमय रचना है जो देवी कामाक्षी की स्तुति करती है । यह कामाक्षायाष्टक (kaamaakshaayaashtak) संस्कृत भाषा में लिखी गई है और इसमें आठ श्लोक शामिल है । इस कामाक्षायाष्टक (kaamaakshaayaashtak) स्त्रोत की रचना किसने की है , इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं हैं , लेकिन कुछ बिद्वान का मानना है की इसकी रचना आदि शंकराचार्य ने कि थी ।
कामाक्षी देवी माँ पार्बती का ही एक रूप है । इनका निबास स्थान असम राज्य में स्थित कामाख्या मंदिर है ।यह मंदिर 51 पीठों में से एक माना जाता है और तंत्र शक्ति उपासना का एक महत्वपूर्ण केंद्र है ।
कामाख्याष्ट्क (kaamaakshaayaashtak) में देवी कामख्या के बिभिन्न रूपों , गुणों और शक्तियों का बर्णन किया गया है ।स्त्रोत्र के प्रथम श्लोक में देवी को शरणागत भक्तो की रक्षा करने बाली बताया गया है ।दुसरे श्लोक में देवी को ब्रह्मांड की आदि देवी और सभी देबताओं की माता बताया गया है ।तीसरे श्लोक में देवी को मोक्षदायिनी बताया गया है ।चौथे श्लोक में देवी को सौंदर्य और लालित्य की देवी बताया गया है ।पांचवे श्लोक में देवी को बासना और कामुकता की देवी बताया गया है ।छठे श्लोक में देवी को बिद्या और ज्ञान की देवी बताया गया है ।सातवें श्लोक में देवी को शक्ति और पराक्रम की देवी बताया गया है ।और आठबें श्लोक में स्तोत्रकर्ता देवी से अपनी भक्ति स्वीकार करने की प्रार्थना करता है ।
कमाख्यायाषट्क (Kaamaakshaayaashtak) का पाठ करने से भक्तो को देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होती है ।यह (kaamaakshaayaashtak) स्तोत्र बिशेष रूप से नबरात्री के दौरान पढ़ा जाता है ।

Kaamaakshaayaashtak Ka Mahatw :

1) कमाख्याष्ट्क का पाठ करने से भक्तो की आध्यात्मिक उन्नति होती है ।

2) इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तो की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती है ।

3) कमाख्याष्ट्क का पाठ करने से भक्तों की पापों का नाश होता है ।

4) कमाख्याष्ट्क का पाठ करने से भक्तों को भय में मुक्ति मिलती है ।

5) कमाख्याष्ट्क का पाठ करने से भक्तों को समृद्धि प्राप्त होती है ।

एक समय यज्ञ दक्ष कियोतब न्योत सबै जग के सुर डारो ।
ब्रह्म सभा बिच माख लग्य तेहि कारण शंकर को तजिडारो ।
रोके रुके नहिं दक्ष सुता, बुझाय बहू विधि शंकर हारो ।
नाम तेरो बड़ है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो ॥१॥
संग सती गण भेज दिये, त्रिपुरारि हिये मँह नेक विचारो ।
राखे नहीं संग नीक अहै जो रुके तो कहूँ नहिं तन तजि डारो ।
जाय रुकी जब तात गृहे तब काहु न आदर बैन उचारो ।
नाम तेरो बड़ है जम में करुणा करके मम कष्ट निवारो ॥२॥
मातु से आदर पाय मिली भगिनी सब व्यंग मुस्काय उचारो ।
तात न पूछ्यो बात कछू यह भेद सती ने नहीं विचारो ।
जाय के यज्ञ में भाग लख्यो पर शंकर भाग कतहुँ न निहारो ।
नाम तेरो बड़ है९ जग में ‘ करुणा करके मम कष्ट निवारो ॥३॥
तनक्रोध बढ्यो मनबोध गयो, अपमान भले सहि जाय हजारो ।
जाति निरादर होई जहाँ तहँ जीवन धारन को धिक्कारो ।
देह हमार है दक्षके अंश से जीवन ताकि सो मैं तजि डारो ।
नाम तेरो बड़ है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो ॥४॥
अस कहि लाग समाधि लगाय के बैठि भई निश्चय उर धारो ।
प्रान अपान को नाभि मिलय उदानहिं वायु कपाल निकारो ।
जोग की आग लगी अब ही जरि छार भयो छन में तन सारो ।
नाम तेरो बड़ है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो ॥५॥
हाहाकार सुन्यो गण शंभु तो जग विध्वंस सबै करि डारो ।
जग्य विध्वंसि देखि मुनि भृगु मन्त्र रक्षक से सब यज्ञ सम्हारो ।
वीरभद्र करि कोप गये और दक्ष को दंड कठिन दै डारो ।
नाम तेरो बड़ है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो ॥६॥
दुखकारन सतीशव कांधे पे डार के विचरत है शिवजगत मंझारो ।
काज रुक्यो तब देव गये और श्रीपति के ढिंग जाय पुकारो ।
विष्णु ने काटि किये शव खण्ड गिट्यो जो जहाँ तहँ सिद्धि बिठारो ।
नाम तेरो बड़ है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो ॥७॥
योनि गियो कामाख्या थल सों, बन्यो अतिसिद्ध न जाय संभारो ।
बास करें सुर तीन दिना जब मासिक धर्म में देवि निहारो ।
कहत गोपाल सो सिद्ध है पीठ जो माँगता है मिल जात सो सारो ।
नाम तेरी बड़ है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो ॥८॥

॥ Kaamaakshaayaashtak Doha॥

लाल होई खल तीन दिन, जब देवि रजस्वला होय ।
मज्जन कर नर भव तरहिं, जो ब्रह्म हत्यारा होय ॥१॥
कामाख्या तीरथ सलिल, अहै सुधा सम जान ।
कह गोपाल सेवन करुँ, खान, पान, स्नान ॥२॥
भक्ति सहित पढ़िहै सदा, जो अष्टक को मूल ।
तिनकी घोर विपत्ति हित, शरण तुम्हारि त्रिशूल ॥३॥
कामाख्या जगदम्बिक, रक्षहु सब परिवार ।
भक्त ‘ गिरि ‘ पर कृपा करि, देहु सबहिं सुख डार ॥४॥
कमाख्याष्ट्क (kaamaakshaayaashtak) एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो देवी कामाक्षी की भक्ति में सहायक होता है । इस (kaamaakshaayaashtak) स्तोत्र का पाठ करने से भक्तो को देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनकी सभी मनोकामनाएँ स्वतः पूरी होती है।
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जय माँ कामाख्या

Acharya Pradip Kumar is renowned as one of India's foremost astrologers, combining decades of experience with profound knowledge of traditional Vedic astrology, tantra, mantra, and spiritual sciences. His analytical approach and accurate predictions have earned him a distinguished reputation among clients seeking astrological guidance.

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