कामाख्या देवी सिद्धि विधान क्या है?

आसन शुद्धि –
कामाख्या में कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) जी पूजन वहाँ के पुजारी जैसे कराएँ वैसे करना चाहिए अथवा कामाख्या देवी पूजन विधि (Kamakhya Devi Pujan Vidhi) के अनुसार करना चाहिए । मन्दिर में सब देवों का पूजन कर लाल वस्त्र पर देवीजी (Kamakhya Devi) का पूजन करें और घर में, गणेश – गौरि, कलश, नवग्रह षोडश मातृकादि का स्थापन पूजनादि के बाद कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) का स्थापन पूजन करें ।
अथ आसन शुद्धि – साधक को चाहिए कि स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करके आचार्य के आदेशानुसार पूर्वादिक मुँह करके आसन पर बैठे । तब आसन के नीचे पूर्वादिक भाग में त्रिकोण मण्डल बनाकर निम्नांकित मन्त्र द्वारा गन्ध पुष्पादि धूप दीप नैवेद्य दक्षिणादि से पूजन करें ।
मन्त्र – ह्लीं आधार शक्तये नमः ॥ ॐ कूर्माय नमः ॥ ॐ अनन्ताय नमः ॥ ॐ पृथिव्यै नमः ॥
पूजन के बाद उस त्रिकोण का स्पर्श इस मन्त्र द्वारा करें ।
मन्त्र – ॐ पृथ्वि ! त्वया धृतालोका देवि त्वं विष्णुना धृता । त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥
अब शुद्धासन पर डालकर कामाख्या देवी पूजा (Kamakhya Devi Puja) के निमित्त आसन ग्राहण करें और रक्षा विधान करें ।
आचमन विधि – पुण्य कार्य के आरम्भ में आचमन अवश्य करना चाहिए । आचमन के समय जल का नख से स्पर्श तथा ओष्ठ का शब्द नहीं होना चाहिए । प्रथम आचमन से आध्यात्मिक, दूसरे से अधिभौतिक और तीसरे से अधिदैविक शान्ति होती है । इसलिए तीन बार आचमन करें और चौथे मन्त्र से बोलते हुए दूसरे पात्र के जल से हाथ की शुद्धि करें ।
मन्त्र – ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः । ॐ माधवाय नमः ॥ तत्पश्चात् हाथ धोये – ॐ हषीकेशाय नमः ॥
पुष्प शुद्धि – नीचे के मन्त्र से पूजा पुष्प को देखें –
ॐ पुष्पे पुष्पे महापुष्पे सुपुष्पे पुष्प सम्भवे ।
पुष्प चमा वकीर्णन च हुँ फट् स्वाहा ॥
कर शुद्धि – कामाख्या देवी साधक (Kamakhya Devi Sadhak) ऐं कहकर रक्त पुष्प हाथ में लेवे और ॐ कहकर दोनों हाथों से प्रेषण करें ( उक्त पुष्प को हाथ में घुमाए ) । इसके बाद उस पुष्प को ईशान कोण में रख दें ।
शरीर तथा पूजन सामग्री शुद्धि – अब आचार्य अथवा साधक स्वयं अपने सिर पर जल छिड़के ।
मन्त्र – ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा ।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं सावाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
पुनः पूजन सामग्री पर जल छिड़के ।
मन्त्र – ॐ पुण्डरीकाक्षं पुनातु ।
यज्ञोपवीत धारण करना – तब इस मन्त्र से यज्ञोपवीत धारण करें ।
मन्त्र – ॐ यज्ञोपवीतं परमं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ॥
तपश्चात् दो बार आचमन करें ।
भस्म और टीका लगाना – ‘ ॐ हुं फट् ‘ से मस्तक, कण्ठ, हदय और बाहु में त्रिपुण्ड धारण करें । पुनः ‘ ऐं ‘ कहकर रोली ले बाएँ हाथ पर रखे और ‘ ह्लीं ‘ का उच्चारण कर जल मिलाकर दाहिने हाथ की अनामिका उंगली से गीला करें और ‘ श्री ‘ बोलकर मध्यमा उंगली से मस्तक के मध्य में एक लम्बा टीका लगाए । ‘ क्लीं ‘ बोलते हुए हाथ धोए और पुनः हाथ जोड़ ‘ ॐ ‘ का उच्चारण कर कामाख्या देवी (Kamakhya Devi Ka Dhyan) का ध्यान करें ।
न्यास विधि –
अथ जीव न्यासः – ॐ सोहमिति पठित्वा हदि हस्तं दत्त्वा ॐ, आं, ह्लीं, क्रों, यं, रं, लं, वं, शं, षं, सं, हो, हंस मम प्राणइह प्राणा ॐ आं. मम जीव इह स्थित, पुनः ॐ आं ममवाडमश्चरश्चक्षु श्रोत घ्राण प्राणः इहा गत्य सुखं चिर तिष्ठन्तु स्वाहा ।
अथ कराङ्गन्यासः- ॐ अं, कं, खं, गं, ङं, आं अगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ इं, चं, छं, जं, झं, ञं, ई, तर्जनीभ्यां नमः । ॐ उं, टं, ठं, डं, ढं, णं, ऊं मध्यमाभ्यां वषट् । ॐ एं, तं, थं, दं, धं, नं, ऐं अनामिकाभ्यां नमः । ॐ ओं, पं, फं, बं, भं, मं, औं कनिष्ठाभ्यां वषट् ॐ अं, यं, रं, लं, वं, शं, षं, सं, हं, लं, क्षं, अः करतल पृष्ठाभ्यां अस्त्राय फट् ।
अंगन्यासः – ॐ अं, कं, खं, गं, घं, ङं, आं हदये नमः ।
ॐ इं, चं, छं, जं, झं, ञं, ई, शिरसे स्वाहा ।
ॐ उं, टं, ठं, डं, ढं, णं, ऊं शिखाये वषट् ।
ॐ एं, तं, थं, दं, धं, नं, ऐं कवचाय हुम् ।
ॐ ओं, पं, फं, बं, भं, मं, औं नेत्राभ्यां वषट् ।
ॐ अं, यं, रं, लं, वं, शं, षं, सं, हं, लं, क्षं, अः करतल पृष्ठाभ्यां अस्त्राय फट् ।
अथ मातृका न्यासः– आधारे वं नमः । शं नमः । षं नमः । सं नमः लिङ्गे । बं नमः । भं नमः । मं नमः । यं नमः । रं नमः । लं नमः + नामे । डं नमः । ढं नमः । णं नमः । तं नमः । थं नमः । दं नमः । धं नमः । नं नमः । पं नमः । फं नमः हदये । कं नमः । खं नमः । गं नमः । घं नमः । ङं नमः । चं नमः । छं नमः । जं नमः । झं नमः । ञ नमः । टं नमः । ठं नमः कंठे । अं नमः । आं नमः । इं नमः । ईं नमः । उं नमः । ऊँ नमः । ऋ नमः । ऋनमः । लृं नमः । नमः । एं नमः । ऐं नमः । ओं नमः । औं नमः ललाटे ।
अंगन्यास करन्यासौः- ॐ कामाक्ष्ये अगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ कामाक्ष्ये तर्जनीभ्यां स्वाहा । ॐ कामाक्ष्ये मध्यमाभ्यां वषट् । ॐ सृष्टि कारिणी कनिष्ठाभ्यां वौषट् । ॐ कामाक्ष्ये सृष्टि रक्षिणी करतल कर पृष्ठाभ्यां अस्त्राय फट् । ॐ कामाक्ष्ये कामं हदयाय नमः । ॐ कामाक्ष्ये शिरसि स्वाहा । ॐ कामाक्ष्ये शिखायै वषट् । ॐ सृष्टिकारिणी कवचाय हुम् । ॐ कामाक्ष्ये कामदायिनी नेत्राभ्यां वौषट् । ॐ कामाक्ष्ये सृष्टि कारिणी करतल कर पृष्ठाभ्यां अस्त्राय फट् ।

प्राणायाम विधि –

यज्ञकर्ता पदमासन से बैठकर कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) को ध्यान करते हुए मौन होकर नेत्र को बन्दकर तीन बार प्राणायाम करें-
पूरक प्राणायामः- नासिका के दाहिने छिद्र को अंगुष्ठ से दबाकर बाएँ छिद्र से श्वांस खींचता हुआ नील कमल के सदृश्य श्याम वर्ण चतुर्भुजी कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) का ध्यान अपनी नाभि में करें ।
कुम्भक प्राणायामः- उस छिद्र को दबाए हुए नासिका के बाएँ छिद्र को कनिष्ठिका और अनामिका अंगुलियों से दबाकर के श्वांस को रोकर कमल के आसन पर बैठे हुए रक्त वर्ण चतुर्भुजी भगवती कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) का ध्यान अपने हदय में करें ।
रेचक प्राणायामः- श्वेतवर्णा त्रिनेत्रा चतुर्भुजी भगवती कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) का ध्यान अपने ललाट में करता हुआ नासिका के दाहिने छिद्र को खोलकर धीरे – धीरे श्वास छोड़े । ( गृहस्थ तथा वानप्रस्थी पाँचों अंगुलियों से नासिका को दबाकर भी प्राणायाम कर सकते हैं । )
प्राणायाम मन्त्र :
क्लीं पूरक प्राणायाम् में सोलह बार मन्त्र को जपे । कुम्भक प्राणायाम् में चौसठ बार तथा रोचक में बत्तीस बार उच्चारण करें ।
अथ पीठन्यासः
हदयः- ॐ आधार शक्तये नमः । ॐ प्रकृत्यै नमः । ॐ कुर्म्माय नमः । ॐ अनन्ताय नमः । ॐ पृथिव्यै नमः । ॐ क्षीर समुद्रायै नमः । ॐ रति द्वीपाय नमः । ॐ मणि मण्डलाय नमः ।
दक्षिण – स्कन्ध – ॐ धर्माय नमः ।
वाम – स्कन्ध – ॐ ज्ञानाय नमः ।
दक्षिण उर मूले – ॐ वैराज्ञाय नमः ।
वाम उर मूले – ॐ ऐश्वर्याय नमः ।
मुख – ॐ धर्माय नमः ।
दक्षिण पार्श्व – ॐ आज्ञानाय नमः ।
वाम पार्श्व – ॐ अवैरायनमः ।
नाभि – ॐ अनैश्वर्याय नमः ।
पुनः
हदय – ॐ शेषाय नमः । ॐ पद्माय नमः । ॐ सूर्य मण्डलाय द्वादश कलात्मने नमः । ॐ सोम मण्डलाय षोडश कलात्मने नमः । ॐ भौम मण्डलाय द्वादश कालात्मने नमः । ॐ सत्वाय नमः । ॐ रं रजसे नमः । ॐ तं तमसे नमः । ॐ आं आत्मने नमः । ॐ पं पात्मने नमः । ॐ क्लीं ज्ञानात्मने नमः ।
पीठ शक्ति न्यास –
हतपदमस्य पूर्वादिकेशरेषु आं प्रमायै नमः । ईं आयायै नमः । ॐ गंगायै नमः । एं सूक्ष्मार्य नमः । ऐं विशुद्धयै नमः । ओं नन्दिन्यै नमः । औं प्रभायै नमः । अं विजयायै नमः । अः सर्वसिद्धिदात्र्यै नमः । मध्ये – ॐ बज्र नषदंष्ट्रयुधाय महासिंहाय ॐ हुँ फट् नमः ।
व्यापक न्यासः
क्लीं यह मन्त्र कहते हुए सिर से पैर तक तीन बार अंग स्पर्श करें ।
अथ अर्घ स्थापन तथा शंख, घंटादि का पूजन ।
ॐ अस्त्राय फट् – यह मन्त्र कहकर शंख प्रक्षालन करें ।
तब वाम भाग में त्रिकाण मण्डल बनाकर शंख उस पर स्थापित करें ।
ॐ नमः – यह मन्त्र कहकर गन्ध, पुष्प, अक्षत, शंख में छोड़ दें । फिर निम्न मन्त्र से शंख में जल छोड़े ।
ॐ ज्ञं नमः । ॐ त्रं नमः । ॐ क्षं नमः । ॐ हं नमः । ॐ सं नमः । ॐ षं नमः । ॐ शं नमः । ॐ वं नमः । ॐ लं नमः । ॐ रं नमः । ॐ यं नमः । ॐ मं नमः । ॐ भं नमः । ॐ बं नमः । ॐ फं नमः । ॐ पं नमः । ॐ नं नमः । ॐ धं नमः । ॐ दं नः । ॐ थं नमः । ॐ तं नमः । ॐ णं नमः । ॐ ठं नमः । ॐ डं नमः । ॐ ठं नमः । ॐ टं नमः । ॐ ञं नमः । ॐ झं नमः । ॐ जं नमः । ॐ छं नमः । ॐ चं नमः । ॐ ङं नमः । ॐ घं नमः । ॐ गं नमः । ॐ खं नमः । ॐ कं नमः । ॐ अः नमः । ॐ अं नमः । ॐ औं नमः । ॐ ओं नमः । ॐ ऐं नमः । ॐ एं नमः । ॐ लृ नमः । ॐ लृ नमः । ॐ ऋ नमः । ॐ ऋ नमः । ॐ ऊं नमः । ॐ उं नमः । ॐ ईं नमः । ॐ इं नमः । ॐ आं नमः । ॐ अं नमः । ॐ ऐं ह्लीं क्लीं श्री कामाक्ष्यै नमः । ॐ पूर्णायै नमः ।
भौम कलात्मने – ॐ वह्नि मण्डलाय नमः ।
अंधदेश कलात्मने – ॐ सूर्य मण्डलाय नमः ।
शंख षोडश कलात्मने – ॐ चन्द्रमण्डलाय नमः ।
अब शंख की गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप और नैवेद्य दक्षिणादि से पंचोपचार पूजन करें । इसी प्रकार घंटा घड़ियाली का भी साथ में पूजन करें । तब हाथ मं पुष्प लेकर दोनों की अलग-अलग प्रार्थना करें ।
शंख की प्रार्थना – त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुनाविधृताकरे । निर्मितः सर्व देवैश्च पञ्चजन्य नमस्तुते ।
घड़ी, घंटा, घड़ियाली की प्रार्थना –
आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु राक्षसाम् ।
घंटानादं प्रकुर्वीत् पश्चाद् घण्टां प्रपजयेत् ॥
शान्ति पाठ एवं मंगल श्लोक :
साधक हाथ में पुष्प और चावल ले हाथ जोड़कर निम्न श्लोक पढ़े और सब देवों को नमस्कार करें ।
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णदः । लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥१॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः । द्वादशेतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥२॥
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा । संग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥३॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्ण चतुर्भुजम् । प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥४॥
अभीप्सितार्थसिद्धयर्थ पूजितो यः सुराऽसुरैः । सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ॥५॥
सर्वमङ्गलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिकेः । शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥६॥
सर्वदा सर्वकार्येषं नास्ति तेषाममंगलम् । येषां हदिस्थो भगवान् मंगलायतनो हरिः ॥७॥
तदेव लग्नं सुदिनं तदेव, ताराबलं चन्द्रबलं तदेव । विद्याबलं दैवबलं तदेव, लक्ष्मीपते ! तेऽङघ्रियुगं स्मरामि ॥८॥
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः । येषामिन्दीवरश्यामो हदयस्थो, जनार्दनः ॥९॥
सर्वष्वारम्भकार्येषु त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः । देवा दिशन्तु नं सिद्धिं ब्रह्मेशान जनार्दनाः ॥१०॥
श्री मन्महागणधिपतये नमः ॥ लक्ष्मी नारायणाभ्यां नमः ॥ उमामहेश्वराभ्यां नमः ॥ वाणी – हिरण्यगर्भाभ्यां नमः ॥ शचीपुरन्दराभ्यां नमः ॥ मातृपितृ चरणकमलेभ्यो नमः ॥ इष्टदेवताभ्यो नमः ॥ कुलदेवताभ्यो नमः । ग्रामदेवताभ्यो नमः ॥ स्थान देवताभ्यो नमः ॥ वास्तु देवताभ्यो नमः ॥ सर्वेभ्यो नमः ॥ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः ॥ सर्वेभ्यो तीर्थेभ्यो नमः ॥
पुष्य अक्षत को श्रद्धापूर्वक पृथ्वी पर रख पुनः पुष्प अक्षत लें निम्न मन्त्र से कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) की प्रार्थना करें –
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै शतत् नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रार्य निहताः प्रणतास्म् ताम् ॥
संकल्पः- अब कुश, अक्षत, पुष्प, जल लेकर निम्न प्रकर से संकल्प करें । ( अमुक के स्थान पर आगे का नाम उच्चारण करता जाए । )
हरिः ॐ तत्सत् श्री विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य ॐ नमः परमात्मने श्री पुराण पुरुषोत्तमाय ब्रह्मणोह्नि द्वितीयपराद्धें श्री श्वेत वाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तेक देशान्तर्गते श्री मद्विष्णुप्रजापति क्षेत्रे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलि प्रथम चरणे अमुक क्षेत्रे ( यथा प्रयाग क्षेत्रे, विंघ्य क्षेत्रे, काम्य क्षेत्रे इत्यादि । अमुक नाम सन्वत्सरे मासोत्तमे मासे अमुक मासे अमुक पक्षे अमुक तिथौ अमुक वासरे श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नोऽहममुक शर्माहं ( ब्राह्मण शर्मा कहे क्षत्रिय वर्मा और वैश्य गुप्त कहे ) सकलदुरितोपशमनं सर्वापच्छान्ति पूर्वक अमुक ( यदि कोई मनोरथ हो ) मनोरथ सिद्ध्यर्थ यथासपादित सामिग्रया श्री कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) पूजनं करिष्ये ॥१॥
तदङ्गत्वेन कैलश स्थापनं वरुण पूजनं सूर्यादि नौग्रह देवता स्थापनं पूजनं च करिष्ये ॥२॥
तत्रादौ निर्विघ्नता सद्ध्यिर्थ गणेशाम्बिकयोः पूजनं च करिष्ये ॥ कहकर भूमि पर छोड़ दें ।
पृथ्वी, गौरी, गणेश पूजन विधि –
पूजनकर्त्ता हाथ में अक्षत, पुष्प लेकर हाथ जोड़े ( पृथ्वी के लिए ) और नीचे का मन्त्र पढ़कर पृथ्वी के ऊपर रख दें – ॐ स्योना पृथिवि नो भवान्नृक्षरा निवेशनी । यच्छा नः शर्म्म सप्रथाः ।
पुनः गणेशजी के लिए अक्षत पुष्प लेकर हाथ जोड़े और नीचे का मन्त्र कहकर गणेशजी को चढ़ा दें –
ॐ गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थमजम्बूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ॥
इसी प्रकार निम्न कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) मन्त्र से गौरि के लिए अक्षत पुष्प चढ़ाए –
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते ॥
अब पृथ्वी, गणेशजी और गौरीजी तीनों का क्रम से निम्न विधि से पूजन करते जाए । पृथ्वी का आह्वान प्रतिष्ठा नहीं करना चाहिए । अतः गौरी – गणेश का आह्वान, प्रतिष्ठा चावल लेकर करें ।
आह्वानः– आगच्छ भगवान् देव स्थाने चात्र स्थिरो भव ।
यावत् पूजां करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव ॥
प्रतिष्ठाः– अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च ।
अस्यै देवत्यमर्चायै मामहेति च कञ्चन ॥
आसनः– रम्यं सुन्दरं दिव्यं सर्वं सौख्यकरं शुभम् ।
आसनं च मयादत्तं गृहाण परमेश्वर ॥ आसनं समर्पयामि ॥
पाद्यः– उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगन्ध संयुतम् ।
पाद प्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगृह्यताम् ॥ पाद्यं समर्पयामि ॥
अर्घ्यः– गृहाण देवेश ! गन्धपुष्पाक्षत सह ।
करुणाकर मे देव गृहाणार्घ्य नमोस्तुते ॥ अर्घ्य समर्पयामि ॥
आचमनः– सर्वतोर्थ वक्तं सुगन्धि निर्मलं जलम् ।
आचम्यताम् मयादत्तं गृहाण परमेश्वर ॥ आचमं स. ॥
स्नानः– गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदा जलैः ।
स्नापितोऽसि त्वया देव तथा शान्तिं कुरुष्व मे ॥
वस्त्रः– सर्व भूषादिके सौम्ये लोकलज्जा निवारणे । मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृहीताम् ॥ वस्त्र समर्पयामि ॥ यज्ञोपवीत – ( केवल गणेशजी को ) – नवाभिर्नन्तुभिर्युक्त त्रिगुणं देवतामयं । उपवीर्तेमपादत्तं गृहाण परमेश्वर ॥ यज्ञोपवीतं समर्पयामि ॥
चन्दनः– श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धढ्य सुमनोहरं । विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्याताम् ॥ गन्धं सं. ॥
कुम्कुम ( रोली )ः– कुम्कुमं कामनादिव्यं कामिनीकाम् संभवम् । कुम्कुमेवार्चितोदेव गृहाण परमेश्वर ॥ कुम्कुमं सं. ॥
अक्षतः– अक्षतांश्चसुरश्रेष्ठ कुम्कुभोक्ताः सुशोभिताः । मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥ अक्षतान् सं. ॥
पुष्पः– माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो । मया नीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर ॥ पुष्पाणि सं. ॥
दूर्वा ( दूब )ः– त्वंदूर्वेऽमृत जन्मासि वन्दितासि सुरैरपि । सौभाग्य सन्ततिर्देहि सर्व कार्यकारी भव ॥ दूर्व सं. ॥
सिन्दूरः– सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्द्धनम् । शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ॥ सिन्दूरं सं. ॥
धूपः– वनस्पतिरसोदभूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः ॥ आघ्रेयः सर्वदेवतां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् । धूपमाघ्रापयामि ॥
दीपः– राज्यं च वर्ति संयुक्त वह्निना योजितं मया । दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्य तिमिरापहम् ॥ दीपं दर्शयामि ।
नैवेद्यः– शर्कराघृत संयुक्त मधुर स्वादुचोत्तमम् । उपहारं समायुक्तं नैवेद्य प्रतिगृह्यताम् ॥ नैवेद्यं निवेदयामि ॥
आचमनः– गंगाजलं समानीतं सुवर्णकलशेस्थितम् ॥
आचम्यताः– सुरश्रेष्ठशुद्धमाचमनीयम् ॥ आचमनीयं सं. ॥
ऋतुफलः– नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम् । कूष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं प्रतिगृह्यताम् ॥ ऋतुफलं सं. ॥
ताम्बूल पूगीफलः– पूंगीफलं महादिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् । एलाचूर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् । ताम्बूलं पूंगीफलं सं. ।
दक्षिणः– हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः । अनन्त पुण्य फलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे । दक्षिणां सं. ॥
विशेषः– पंचोपचार पूजन में यही कामाख्या देवी मन्त्र प्रयोग (Kamakhya Devi Mantra Prayog) किया जाता है । स्नान से लेकर दक्षिणा तक की विधि तीनों अर्थात् ( पृथ्वी गौरी गणेश ) के लिए करें । आगे भी अन्य देवों के पूजन के लिए यही मन्त्र और नियम काम में लाए । किसी सामग्री के अभाव में चावल का प्रयोग कर नियम पूरा करें । इसके बाद प्रार्थना अलग – अलग करनी चाहिए । हाथ में पुष्प – अक्षत लेकर नीचे के मन्त्र से प्रार्थना कर चढाएँ ।
पृथ्वी की प्रार्थना –
सशैल सागरां पृथ्वीं यथा वहसिमूर्द्धनि ।
तथा मां वह कल्याणं सम्पत्त्सन्ततिभिः सह ॥
गणेशजी की प्रार्थना –
ॐ रक्ष – रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक ।
भक्तानां अभयंकर्त्ता त्राता भव भवार्णवात् ॥
द्वै मातुर कृपासिन्धो षण्मातुराग्रज प्रभो ।
वरद् त्वं वरं देहि वांञ्छितं वाञ्छतार्थद ॥
गौरीजी की प्रार्थना –
शरणागतदीनार्त परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥
कलश स्थापन –
पूजनकर्त्ता पृथ्वी का स्पर्श करें ।
मन्त्र – ॐ भूरसि भूमिस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री । पृथ्वीं यच्छ पृथिवीन्दृ पृथिवीं माहि सी ।
फिर कलश का गोबर से स्पर्श करें ।
मन्त्र – ॐ मानस्तोके तनये मान आयुषि मानो गोषुमानो अश्वेषुरीरिषः मानो वीरान्नुद्रभामिनौ वधीर्हविष्मन्तः सदमित्व हवामहे ।
फिर कलश के नीचे रखे धान्य को छुए ।
मन्त्र – ॐ धान्न्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्वोदोनायत्वा दीर्घामनुप्प्रसितिधायुषे धान्देवोवः सविता हिरण्य पाणि । अतिगृव्णा त्वच्छिद्रेय पाणिना चक्षुषे त्वा महीनाम्पयोसि ।
यथा स्थान कलश का स्पर्श करें ।
ॐ आजिग्घ्रं कलशम्मह्या त्वा विशन्तिन्दवः । पुनरुर्जा निवर्तस्वसानः सहसन्न् धुक्ष्वोरुधारा पयस्वत्नी पुनर्मा विशतादयिः ।
कलश में जल भरे ।
ॐ वरुणस्योत्तम्भतमसि वरुणस्य स्कम्भक्षर्ज्जनीस्थो षरुणस्यऽऋतु सदन्न्यसि वरुणस्य ऋतु सदनमसि वरणस्यऽ ऋतसदनमासीषं ।
कलश में कलावा बाँधे ।
ॐ युवासुवासाः परिवीतआगात् सउश्रेयान् भवति जायमानः ।
तंधीरासः कवय उन्नयन्ति स्वाध्यो मनसा देवयन्तः ।
कलश में रोली छोड़े –
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टाम् करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहो पह्नेश्रियम् ॥
कलश में पुष्प छोड़े –
ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वेनक्षत्राणि रुपमश्विनौ व्यात्तम् इष्णान्निषाण मुम्ममइषाण, सर्वलोकम्मइषाण ।
सर्वोषधीः– ॐ या औषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगम्पुरां । मनैनु बभ्रणामह सतब्धामानि सप्त च ॥
दूर्वाः– ॐ काण्डात्काण्डात्पुरोहन्ति परुषः परुषस्परि । एवानो दूर्वे प्रतनु सहस्रेण शतेन च ॥
हल्दी – ॐ या औषधी पूर्वो जाता देविभ्यस्त्रि युगं पुरा । अनने बहुनाऽवसित धमानि ॥
सप्तमृत्तिकाः– ॐ स्योना पृथिवी नो भवानृक्षराः निवेष । यच्छा नः शर्म्म सप्रथाः ।
पुंगीफलः– ॐ याः फलिनीर्य्या अफलः अनुष्पा पुष्पिणी । वृहस्पतिप्प्रसूतास्तानोमुञ्चन्त्य सः ॥
पानः– ॐ प्राणाय स्वाहाऽपानाय स्वाहा व्यानाय स्वाहा ।
पञ्चरत्न – ॐ परिवाजपतिः कविरग्निर्हव्यान्य क्रमीत् दधद्रत्ननिदाशुषे ॥
द्रव्यः– ॐ हिरण्यगर्भं समवर्त्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् । सदाधार पृथिवीन्द्यामुते मां कस्मै देवाय हविषा विधेम् ॥
पञ्जपल्लव रखेः– ॐ अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता । गोभाज इत्किलासथ यत्सनपथ पुरुषम् ॥
कलश पर ( यव ) पूर्णपात्र रखे —
ॐ पूर्णादर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत ।
वस्न्नेव विकीर्णावहा इषमूर्ज शतक्रतो ॥
कलश के चारों ओर दिव्य वस्त्र लपेट दें और कलावे से बाँध दें ।
ॐ युवासुवासा परिवीत आगात् सउश्रेयान्भवति खायमानः । तं धीरा सः कवय उन्नयन्ति स्वाध्योमनसादेवयन्तः ॥
श्री फल लाल वस्त्र में लपेटकर पूर्ण पात्र के ऊपर रखें —
ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्व नक्षत्राणि रुपमश्विनौ व्यात्तम् । इष्प्पन्निषाण मुम्ममइषाण सर्वलोकम्मइषाण ।
( देशाचार अनुसार कहीं कहीं कलश पर श्री फल न रख के दीप ही रखतें हैं । वहाँ दीप जलाकर इस मन्त्र द्वारा कलश पर स्थापित करें – ॐ अग्निर्ज्योति ज्योतिरग्निः स्वाहा, सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्च स्वाहा, सूर्योवर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा, ज्योतिः सूर्यः सूर्योज्योतिः स्वाहा । )
दीपः– ( रां ) यह कहकर प्रज्वलित करें । फिर संकल्प कर कलश के दक्षिण तरफ अक्षत के ऊपर स्थापित करें ।
संकल्प :
सकल मनोरथापत्ये कीट पतंग पतनवादिभिः निर्वाण दोष रहितौ अग्निदेवताकौदिप्यमानघृत प्रदीपौ श्री भगवत्यै जै कामाक्ष्यैसम्प्रदेद ॥
दीप अर्पण –
{{ ॐ अग्निर्ज्योति रविज्योंति चन्द्रज्योतिस्थैव च ।
ज्योतिशा मुक्तयो कामाक्ष्ये दीपोऽयं प्रतिगृह्यताम् । }}
अब अक्षत लेकर निम्न मन्त्र से दीप की प्रार्थना कर उसी कर उसी पर छोड़ दें –
{[ भो दीप देवस्वरुपस्त्वं कर्म साक्षी सविघ्नकृत ।
यावत्कर्म समाप्तिः स्यात् तावत्वं सुस्थिरो भव ॥ }}
कलश स्थापन के पश्चात् वरुण देवता का इस पर आह्वान करें । पुनः हाथ में अक्षत लेकर –
{{ॐ पातालवासिनं देवं वरुणं श्रेष्ठ देवताम् ।
आवाह्यामि देवेश तिष्ठ त्व पूजयाम्यहम् ॥ }}
अस्मिन्कलशे वरुणं आवहेयामि । अब इसके बाद गौरी – गणेश पूजन के विधि अनुसार और मन्त्र से प्रतिष्ठा, आसन पाद्यादि समर्पित कर हाथ में जल लेकर कहे – अत्र गन्धाक्षत पुष्प धूप दीप, नैवेद्यतांबूल पूंगीफलं दक्षिणा वरुणाय न मम । अनया पूजया वरुण देवता सांगाय सपरिवाराय प्रीयतां न मम ।
फिर कलश को स्पर्श करें और कामना करते हुए पढ़े –
सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः ।
आयान्तु यजमानस्य ( मम परिवारस्य ) दुरितक्षयकारकाः ॥१॥
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समश्रितः ।
मूले तस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥२॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा ।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ॥३॥
अङ्गैश्च सहिता सर्वे कलशं तु समाश्रिता ।
अत्र गायत्री सावित्री शान्ति पुष्टिकरी तथा ॥४॥
पुनः कलश की प्रार्थना करें –
देव दानवसंवादे मध्यमाने महोदधौ ।
उत्पन्नोसि तदा कुम्भः विधृतो विष्णुना स्वयम् ॥
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वेत्वयि स्थिताः ।
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताह ॥
शिव स्वयं त्वमेवासि विष्णुत्वं च पजापतिः ।
आदित्या वसवो रुदाः विश्वेदेवः सपैत्रिकाः ॥
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदाः ।
त्वत्प्रसादादिदं यज्ञं कर्तुमीहे जलोदभवः ॥
सान्निध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा ।
यावत्कर्म समाप्तिः स्यात्तावत्वं सन्निधोभाव ॥
नवग्रह स्थापन –
बुधः– प्रियंगु कलिका श्यामं रुपेणप्रतिमं बुधम् । सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ॥
गुरुः– देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसन्निभम् । बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तन्नमामि वृहस्पतिम् ॥
शुक्रः– हिम कुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् । सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ।
शनिः– नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं । छायामार्तण्डसंभूतं तन्नमामिशनैश्चरम् ॥
राहुः– अर्द्धकायं महावीरं चन्द्रादित्यविमर्दनम् । सिंहिकागर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ॥
केतुः– पलाश पुष्प संकाशं तारकाग्रह मस्तकम् । रौद्रं रौद्रत्मकं घोरं तं केतु प्रणमाम्यहम् ॥
नीचे लिखे मन्त्रों से नवग्रहों का पृथक – पृथक आह्वान कर पूर्व लिखित विधि अनुसार प्रतिष्ठा, अर्घ्य, पाद्य, स्नान, नैवेद्यादि समर्पित कर पूजन करें ।
सूर्यः– जपा कुसुम संकाशं काश्पेयं महाद्युतिम् । तमोऽरि सव्र पापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥
चन्द्रः– दधि शंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवत् । नमामि शशिनं सोम शम्भोर्मुकुटभूषणम् ॥
मंगलः– धरणी गर्भसंभूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् । कुमारं शक्ति हस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम् ॥
आह्वान के पश्चात् विधिपूर्वक नौग्रहों का पूजन करें । तदन्तर हाथ जोड़ कर प्रार्थना करे —
{{ ब्रह्मा मुरारिः त्रिपुरान्तकारी भानु शशी भूमि सुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शक्रो शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहाः शान्ति करा भवन्तु ॥}}
षोडश मातृका पूजन :
१. गणेश गौरी, २. पद्मा, ३. शची, ४. मेधा, ५. सावित्री, ६. विजया, ७. जया, ८. देव सेना, ९. स्वधा, १०. स्वाहा, ११. मातरः, १२. लोकमातरः, १३. धृतिः, १४. पुष्टिः, १५. तुष्टिः, १६. आत्मनः कुलदेवताः ।
इन मातृकाओं का पूर्ववत् पूजन करें ।
षोडशमातृका चक्र :
पूर्व –
लाल १६ आत्मन कुल देवता सफेद चावल १२ लोक माताः लाल
८ देव सेना सफेद चावल ४ मेधा
सफेद चावल १५ तुष्टिः लाला
लाल ११ माताः सफेद चावल ७ जया लाल
३ शची
लाल
१४ पुष्टिः सफेद चावल १० स्वाहा लाल
६ विजया सफेद चावल २ पद्मा
सफेद चावल १३ धृतिः लाल
९ स्वधा सफेद चावल ५ सावित्री लाल
१ गणेश, गौरी
पश्चिम –
सप्त घृतमातृका पूजन :
अग्निकोण में दीवार पर घी की धार से सात बिन्दुओं को बनाकर गुड़ से एक में मिला देना चाहिए और नाम ले लेकर उनका आह्वान – पूजन करना चाहिए । सप्तघृत मातृकाओं के नाम क्रमशः इस प्रकार हैं –
१. ॐ कीर्त्यै नमः, २. ॐ लक्ष्म्यै नमः, ३. ॐ धृत्यै नमः, ४. ॐ मेधायै नमः, ५. ॐ स्वाहायै नमः, ६. ॐ प्रज्ञायै नमः, ७. ॐ सरस्वत्यै नमः ।
श्री
O
O O
O O O
O O O O
O O O O O
O O O O O O
O O O O O O O
सप्तघृत मातृका चक्र
चौंसठ योगिनी पूजन –
एक श्वेत वस्त्र पर रोली से चौंसठ खाने बनाकर एक – एक खाने में एक – एक योगिनियों को स्थित करें । इनके नाम क्रम से यह हैं –
{{ १. गजानना, २. सिंहमुखी, ३. गृहस्था, ४. काकतुंडिका, ५. उग्रग्रीवा, ६. हयग्रीवा, ७. वाराही, ८. शरमानना, ९. उलूकी, १०. शिवाख्या, ११. मयूरा, १२. विकटानन, १३. अष्टवक्रा, १४. कोटराक्षी, १५. कुब्जा, १६. विकटलोचना, १७. शुष्कोदरी, १८. ललजिह्वा, १९. श्वेतदष्ट्रा, २०. वानरानना, २१. ऋक्षाक्षी, २२. केकरा, २३. वृहत्तुन्डा, २४. सुराप्रिया, २५. कपालहस्ता, २६. रक्ताक्षी, २७. शुक्री, २८. श्येनी, २९. कपोतिका, ३०. पाशहस्ता, ३१. दण्डहस्ता, ३२. प्रचण्डा, ३३. चण्डविक्रमा, ३४. शिशुघ्री, ३५. पापहन्त्री, ३६. काली, ३७. रुधिर पायिनि, ३८. वसोधरा, ३९. गर्भभक्षा, ४०. हस्ता, ४१. ऽऽ न्त्रमालिनी, ४२. स्थूलकेशी, ४३. वृहत्कुक्षिः, ४४. सर्पास्या, ४५. प्रेतहस्ता, ४६. दशशूकरा, ४७. क्रौञ्ची, ४८. मृगशीर्षा, ४९. वृषानना, ५०. व्वात्तास्या, ५१. धूमिनि, श्वाषाः, ५२. व्यौमैकचरणा, ५३. उर्ध्वदृक् , ५४. तापनी, ५५. शोषिणी दृष्टि, ५६. कोटरी, ५७. स्थूल नासिका, ५८. विद्युत्प्रभा, ५९. बलाकास्या, ६०. मार्जारी, ६१. कटपूतना, ६२. अट्ठाटटहासा, ६३. कामाक्षी, ६४. मृगाक्षी मृगलोचना ।}}

स्थलमातृका पूजन –

१. ब्राह्मी, २. माहेश्वरी, ३. कौमारी, ४. वैष्णवी, ५. वाराही, ६. इन्द्राणी, ७. चामुण्डा – ये सात स्थल मात्रुकाओं का नाम लेकर पूर्ववत् कहे हुए रीति से आह्वान पूजनादि करना चाहिए ।
अधिदेवता पूजन :
ईश्वर शिवा, स्कन्द, विष्णु, ब्रह्मा, इन्द्र, यम, काल, चित्रगुप्त – ये क्रम से नवग्रहों के दक्षिण भाग में स्थापित कर पूजन करें ।
प्रत्यधि देवता पूजन :
अग्नि, जल, पृथ्वी, विष्णु, इन्द्र इन्द्राणी, प्रजापति, सर्प, ब्रह्मा ये क्रम से नवग्रहों के वाम भाग में स्थापित कर पूजन करें ।
पञ्चलोक पाल :
१. गणपति, २, दुर्गा, ३. वायु. ४. आकाश और ५. अश्विनी कुमार । पंचलोक पालों को नौ ग्रहों के उत्तर भाग में आह्वान स्थापन तथा पूजनादि करना चाहिए ।
दश दिकपाल :
१. इन्द्र, २. अग्नि, ३. यम, ४. नऋति, ५. वरुण, ६. वायु. ७. कुबेर. ८, ईश्व, ९. अनन्त और १०. ब्रह्मा ।
दश दिकपालों को दसों दिशाओं में स्थापित करें ।
श्री कार्तिकेय पूजन :
जहाँ देवी का आसन ( रक्त वस्त्र ) है उसी के सामने नीचे की ओर षडानन स्वामी कार्तिकेय का पूजन करना चाहिए ।
बिल्व पत्र पूजन :
बिल्व वृक्ष की एक डाल काटकर लाए और आसन के ऊपर छाया की भाँति लगा दें । अभाव में २ – ३ पत्तियों की ९ पंखुड़ियाँ ही लाकर वस्त्र पर रख कर ध्यान करें –
ॐ चतुर्भुज बिल्व वृक्षः रजताभ्याम् वृषस्थितम् ।
नानालंकार संयुक्तं जटामण्डल धारिणीम् ॥
‘ ॐ बिल्व वृक्षाय नमः ‘ कहकर पूजन करें । फिर कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) कि प्रार्थना करें – ॐ श्री फलोऽसि महाभाग सदात्वं शंकर प्रिये कामाक्ष्या रोपनार्थाय त्वांमहं वरये प्रभो ।

Kamakhya Devi Pujan –

अब कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) के पूजन के लिए साधक को दत्त हो अग्रसर होना चाहिए । रक्त वस्त्र पर कामाख्या देवी यन्त्र (Kamakhya Devi Yantra) अवश्य हो । इसके अतिरिक्त जो कामाख्या देवी मन्त्र-यन्त्र- तन्त (Kamakhya Devi Mantra Yantra Tantra) सिद्ध करना हो उसे भी रखकर साथ ही पूजन करें । यन्त्र -तन्त्र कितनी भी संख्या में पूजन के लिए रख दिए जाए, पूजन मात्र से सिद्ध हो जाते हैं किन्तु कामाख्या देवी मन्त्र (Kamakhya Devi Mantra) तो यथोचित संख्या में जपने से ही सिद्ध होंगे ।
Kamakhya Devi Dhyan-
{{ महापद्मवनान्तः स्ये कारणानन्द विग्रहे ।
शब्दब्रह्ममयि स्वच्छे कामेश्वरि प्रसीदमे ॥}}
Kamakhya Devi Prarthna –
रक्ताम्भोधिस्थपीतोल्लसदरुण सरोजाधिरुढा कराब्जै । शूलं कोदण्ड मिक्षूद्भवमथगुणमप्यङ्कुशं पञ्चबाणान् ॥ बिभ्राणाऽसृक्कपालं त्रिनयनलसिता पीनवक्षोरुहाढ्या देवी बालार्क वर्ण भवतु सुखकारी कामाक्ष्या परा नः ॥ तुलाकोटि पराक्रान्ता पादपद्मचराश्रिता । सिंहासनोर्द्ध संसुप्ता शवाशन कृताश्रया ॥ मणिप्रभा विघ्नेन शिवेन परमेष्ठिना । नवकेशेन संश्लिष्टा कामाख्या परमेश्वरी ॥
Kamakhya Devi Aahwan –
ॐ भगवती स्वकीय गण तथा परिवार सहिते इहागच्छ इह तिष्ठ, मम पूजा गृहाण, सम्मुखे भव वरदो भव ।
सिंहचर्मोत्तरासंगा कामाख्या विपलोदरी ।
वैयाघ्रचर्मवसना तथा चैव हरोदरी ॥
चण्डित्व चण्डिरुपोसि सुरतेजो महाबले ।
आगच्छ तिष्ठ यज्ञेस्मिन् यावत् पूजां करोम्यहम् ॥
Kamakhya Devi Pran Pratishtha –
विनियोगः– विनियोग के लिए पृथ्वी पर जल छोड़े कामाख्या देव्याः प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा, विष्णुः महेश्वरा ऋषयः ऋग् यजुसामनिच्छंदासि चैत्यन्त देवता प्राण प्रतिष्ठायाः विनियोगः ।
कामाख्या देवी मन्त्र (Kamakhya Devi Mantra) – ॐ आं ह्लीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं सः कामाक्षायाः प्राणाः इह प्राणाः । ॐ आं ह्लीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं सः कामाक्षायाः जीव इह स्थितः । ॐ आं ह्लीं क्रौं यं रं कामाक्षायाः ( अस्यां मूतौं व चित्रौ ) सर्वेन्द्रियाणि वाङ्मनस्त्वकचक्षुः श्रोत्र – जिह्वा -घ्राण – पाणिपाद – पायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ।
अस्यै प्राणः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च ।
अस्यै देवतमचीर्य मामहेति च कश्चन ॥
अब साधक या पूजनकर्ता मूल कामाख्या देवी मन्त्र (Kamakhya Devi Mantra) “ॐ ह्लीं देव्यै नमः”  का जप करें पुनः पूर्वोक्त विधि अनुसार अंगन्यास मातृका न्यास करावे । तथा नीचे लिखे कामाख्या देवी मन्त्र (Kamakhya Devi Mantra) से तीन बार पुष्पांजलि प्रदान करे –
ॐ भूः भुवः स्वः ॐ कामाक्ष्यै चामुण्डायै विदमहे भगवत्यै धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ।
पूजन – अब कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) की षोडशोपचार विधि से पूजन करे । ‘ ॐ ऐं ह्लीं क्लीं कामाख्यै स्वाहा ‘ यह कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) का द्वादश अक्षर वाला मन्त्र है । इसी एक मन्त्र से कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) का पूजन करना चाहिए तथा तीन पत्तियों वाले बेलपत्ते की पंखुड़ी आसन के लिए इस तरह कामाख्या देवी मन्त्र (Kamakhya Devi Mantra) बोलकर दें – ॐ ऐं ह्लीं क्लीं कामाख्यै स्वाहा पाद्यं समर्पयामि ।
अर्घ्य के लिए – ॐ ऐं ह्लीं क्लीं कामाख्यै स्वाहा अर्घ्य समर्पयामि । इस प्रकार से पूजन कर निम्नलिखित कामाख्या देवी मन्त्र (Kamakhya Devi Mantra) से प्रार्थना करनी चाहिए –
Kamakhya Devi Prarthna :
जय कामेशि चामुण्डे जय भूतापहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
नमों देविमहाविद्ये ! सृष्टिस्थित्यन्त कारिणी ।
नमः कमल पत्राक्षि ! सर्वाधारे नमोऽस्तु ते ॥
सविश्वतैजसप्राज्ञ वराट्ं सूत्रात्मिके नमः ।
नमोव्याकृतरुपायै कूटस्थायै नमो नमः ॥
कामाक्ष्ये सर्गादिरहिते दुष्टसंरोधनार्गले ! ।
निरर्गल प्रेमगम्ये ! भर्गे देवि ! नमोऽस्तु ते ॥
नमः श्री कालिके ! मातर्नमो नील सरस्वति ।
उग्रतारे महोग्रे ते नित्यमेव नमोनमः ॥
छिन्नमस्ते ! नमस्तेऽस्तु क्षीरसागर कन्यके ।
नमः शाकम्भरि शिवे ! नमस्ते रक्तदन्तिके ॥
निशुम्भ शुम्भदलनि ! रक्तबीज विनाशिनि ।
धूम्रलोचन निर्णासे ! वृत्रासुरनिबर्हिणिं ॥
चण्डमुण्ड प्रमथिनि ! दानवान्त करे शिवे ! ।
नमस्ते विजये गंगे शारदे ! विकटानने ॥
पृथ्वीरुपे दयारुपे तेजोरुपे ! नमो नमः ।
प्राणरुपे महारुपे भूतरुपे ! नमोऽस्तु ते ॥
विश्वमूर्ते दयामूर्ते धर्ममूर्ते नमो नमः ।
देवमूर्ते ज्योतिमूर्ते ज्ञानमूर्ते नमोऽस्तु ते ॥
कामाख्ये काम रुपस्थे कामेश्वरी हर प्रिये ।
कामांश्च देहि मे नित्यं कामेश्वरि नमोस्तुते ॥
Kamakhya Devi jap Niyam –
( १ ) ‘ ऐं ह्लीं क्ली चामुण्डायै विच्चे ‘ ( यह कामाख्या देवी का मंत्र (Kamakhya Devi Mantra) में मन्त्रराज कहलाता है ) या
( २ ) ‘ ॐ ऐं ह्लीं क्लीं कामाख्यै स्वाहा ‘ ( यह कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) का दशाक्षर मन्त्र है ) या
( ३ ) ‘ॐ भूः भुवः स्वः ॐ कामाक्ष्यै चामुण्डायै विदमहे भगवत्यै धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् । ‘ ( यह कामाख्या देवी का गायत्री मन्त्र (Kamakhya Devi Gayatri Mantra) है )
इस कामाख्या देवी मंत्र (Kamakhya Devi Mantra) का प्रतिदिन यथाशक्ति बराबर से जप करें । कामाख्या देवी मन्त्र (Kamakhya Devi Mantra) में जितने अक्षर हैं उतने लाख का मन्त्र जप एक पुरश्चरण कहलाता है । पुरश्चरणहीन मन्त्र भी निष्प्राण समझा जाता है । एक पुरश्चरण समाप्त होने पर कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) का हवनादि करना चाहिए । जप संख्या का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण किया जाता है । हवन द्रव्यों में विशेषकर घृत, खीर, तिल, बिल्व पत्र, यव मधु आदि लेकर दशांश हवन करे । तब कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) की सिद्धि प्राप्त होती है ।
तत्पश्चात् अन्य कामाख्या देवी मन्त्रों (Kamakhya Devi Mantra) की सिद्धि के लिए उपरोक्त किसी एक मन्त्र को, अथवा किसी दो या तीनों को १०८ बार जपे । यह साधक के मनोबल और इच्छा के ऊपर है और तब कामाख्या देवी मन्त्र (Kamakhya Devi Mantra) के विधि और संख्यानुसार वह मन्त्र जपे । पश्चात् संख्यानुसार जप समाप्त होने पर हवन करें । शेष नियम पहले जैसा ही है अर्थात् उपरोक्त कामाख्या देवी मन्त्रों (Kamakhya Devi Mantra) के जप के १० हवन के और १ तर्पण के हुआ और जो अन्य कामनार्थ मन्त्र जपा गया है उसकी संख्यानुसार दशांश हवन और दशांश तर्पण करे तब कामाख्या देवी मन्त्र (Kamakhya Devi Mantra) भी सिद्ध हो जाता है । इसमें तनिक भी संशय नहीं हैं ।
दिग्बन्धन –
आत्म रक्षार्थ तथा यज्ञ रक्षार्थ निम्न मन्त्र से जल, सरसों या पीले चावलों को ( अपने चारों ओर ) छोड़ें –
मन्त्र –
ॐ पूर्वे रक्षतु वाराहः आग्नेयां गरुड़ध्वजः ।
दक्षिणे पदमनाभस्तु नैऋत्यां मधुसूदनः ॥
पश्चिमे चैव गोविन्दो वायव्यां तु जनार्दनः ।
उत्तरे श्री पति रक्षे देशान्यां हि महेश्वरः ॥
ऊर्ध्व रक्षतु धातावो ह्यधोऽनन्तश्च रक्षतु ।
अनुक्तमपि यम् स्थानं रक्षतु ॥
अनुक्तमपियत् स्थानं रक्षत्वीशो ममाद्रिधृक् ।
अपसर्पन्तु ये भूताः ये भूताः भुवि संस्थिताः ॥
ये भूताः विघ्नकर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया ।
अपक्रमंतु भूतानि पिशाचाः सर्वतोदिशम् ।
सर्वेषाम् विरोधेन यज्ञकर्म समारम्भे ॥
Kamakhya Devi Hawan vidhi –
अग्नि – स्थापन – तुष, केश, रेत, भस्मादि निषेध वस्तु से रहित चारों कोण से हस्त परिमाण वेदी बनाना चाहिए । भूमि को कुशों से शुद्ध करे । इन कुशों को ईशान दिशा में रख कर शुद्ध गोबर और जल से लीपे । श्रुवा के अग्रभाग से वेदी के बीच में दक्षिण तरफ से शुरु करके ३ रेखा खींचे जो कि पश्चिम से पूर्व की ओर हो । अनामिका और अंगूठे से खींची हुई लकीर की मिट्टी को थोड़ा सा लेकर ईशान दिशा में फेंक दे । फिर वेदी पर जल छिड़के । वेदी के पूर्व में उत्तर की ओर अग्रभाग करके कुशा रखे । पुनः वेदी के दक्षिण में पूर्व की ओर अग्रभाग पर कुशा रखे । पुनः वेदी के पश्चिम में उत्तर की ओर अग्रभाग करके कुशा रखे । पुनः वेदी के उत्तर में पूर्व की ओर अग्रभाग कर कुशा रखे । तब कांसे के पात्र में अग्नि मँगवाए और पूर्व मुख अग्नि निम्न कामाख्या देवी मन्त्र (Kamakhya Devi Mantra) द्वारा स्थापन करें –
कामाख्या देवी मन्त्र (Kamakhya Devi Mantra) – त्वं मुखं सर्वदेवां सप्तार्चिरभिद्यते । आगच्छ भगवन्नग्ने यज्ञेऽस्मिन्सन्निधो भव ॥ अग्निं आवाहयामि स्थापयामि इहागच्छ इह तिष्ठ ।
‘ ॐ पावकाग्नये नमः ‘ – इस मन्त्र द्वारा पज्चोपचार से पूजा करें । तब हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना करें – ॐ अग्ने खाण्डिल्यगोत्रमेषध्वज ! प्राङ्मुख मम सम्मुखो भव ।
प्रथम ये सात आहुतियाँ घी की दें –
( १ ) ॐ प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये इदं न मम । ( २ ) ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदमिन्द्राय इदं न मम । ( ३ ) ॐ अग्नये स्वाहा । इदमग्नये इदं न मम । ( ४ ) ॐ सोमाय स्वाहा । इदं सोमाय इदं न मम । ( ५ ) ॐ भूः स्वाहा । इदमग्नये इदं न मम । ( ६ ) ॐ भुवः स्वाहा । इदं वायवे इदं न मम । ( ७ ) ॐ स्वः स्वाहा । इदं सूर्याय इदं न मम ।
पूर्णाहुति – अब जिन – जिन मन्त्रों की जितनी आहुतियाँ देनी हों वह देनी चाहिए । फिर उन्हीं मन्त्रों को कहने के बाद नीचे लिखे कामाख्या देवी मन्त्र (Kamakhya Devi Mantra) से पूर्णाहूति दें –
ॐ सप्तमे अग्नेमधः स सप्ति जिह्वाः सप्त ऋषयः सप्त धाम प्रियाणि । सप्त होत्राः सप्त धात्वा यजन्ति सप्त योनीरापृणस्व धृतेन स्वाहा । अनेन होमेन श्री परमेश्वरी कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) प्रीयतां न मम ।
दशांश हवन के बाद दशांश तर्पण ‘ कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) तर्पयामि ‘ इस मन्त्र से, तर्पण संख्या का दशांश मार्जन कामाख्या मूर्ति (Kamakhya Devi Murti) का, यन्त्र का और मन्त्र, का ‘ कामाख्या ‘ मार्जयामि इस मन्त्र से होता है । मार्जन के प्याले में दूध गंगाजल, चन्दन में से एक अथवा तीनों सम्मिलित होना चाहिए । यह मार्जन दूब से किया जाता है और अंत में मार्जन संख्या का दशांश ब्राह्मण भोजन हो तब मन्त्र जप की अथवा कामाख्या देवी (Kamakhya Devi Path) पाठ की पूर्णता होती है ।
जप समर्पण – कामाख्या देवी मन्त्र जप (Kamakhya Devi Mantra Jap) पूरा करके उसे भगवती कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) को समर्पण करते हुए कहें –
गुह्यति गुह्य गोप्त्री त्वं, गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि, त्वत्प्रसादान्महेश्वरि ॥
इस प्रकार कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) के बाएँ हाथ में जप समर्पण करे ।
अब श्रुवा से भस्म लेकर लगाए –
ॐ त्र्यायुषं जमदग्ने इति ललाटे ।
ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषम् इति ग्रीवायां ।
ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषम् इति दक्षिण बाहुमूले ।
ॐ तन्नोऽअस्तु त्र्यायुषम् इति हदि ।
अब वेदी के चारों तरफ रखी हुई कुशओं को अग्नि में डाल दे । आचार्य और ब्राह्मणों को दक्षिणा दें । तब हाथ में पुष्प लेकर कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) का प्रार्थना करें ।
Kamakhya Devi Prathna :
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकत्यै भद्रार्य नियताः प्रणाताः स्माताम् ॥
नमस्ते पार्श्वयोः पृष्ठे नमस्ते पुरतोऽम्बिके ! ।
नमः ऊर्ध्व नमश्चाऽधः सर्वत्रैव नमोनमः ॥
जय देवि ! जगन्मातर्जय देवि परात्परे ! ।
जय श्री कामरुपस्थे ! जय सर्वोत्तमोत्तमे ॥
Kamakhya Devi Dhyan –
रविशशियुतकर्णा कुंकुमापीतवर्णा,
मणिकनकविचित्रा लोलजिह्वा त्रिनेत्रा ।
अभयवरदहस्ता साक्षसूत्रप्रहस्ता,
प्रणतसुरनरेशा सिद्धकामेश्वरी सा ॥
अरुण – कमलसंस्था रक्तपदमासनस्था,
नवतरुणशरीरा मुक्तकेशी सुहारा ।
शवह्यदि पृथुतुङ्गा स्वांघ्रि, युग्मा मनोज्ञा,
शिशुरविसमवस्त्रा सर्वकामेश्वरी सा ।
विपुलविभवदात्री स्मेरवक्त्रा सुकेशी,
दलितकरकदन्ता सामिचन्द्रावनभ्रा ।
मनसिज – दृशदिस्था योनिमुद्रांलसन्ती ।
पवनगगनसक्तां संश्रुतस्थानभागा ॥
चिन्त्या चैवं दीप्यदग्निप्रकाशा,
धर्मार्थाद्यैः साधकैर्वाञ्छितार्थः ॥
– कालिका पुराण
Kamakhya Devi Stotra –
जय कामेशि चामुण्डे जय भूतापहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
विश्वमूर्ते शुभे शुद्धे विरुपाक्षि त्रिलोचने ।
भीमरुपे शिवे विद्ये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
मालाजये जये जम्भे भूताक्षि क्षुभितेऽक्षये ।
महामाये महेशानि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कालि कराल विक्रान्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कालि कराल विक्रान्ते कामेश्वरि हरप्रिये ।
सर्व्वशास्त्रसारभूते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कामरुप – प्रदीपे च नीलकूट – निवासिनि ।
निशुम्भ – शुम्भमथनि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कामाख्ये कामरुपस्थे कामेश्वरि हरिप्रिये ।
कामनां देहि में नित्यं कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
वपानाढ्यवक्त्रे त्रिभुवनेश्वरि ।
महिषासुरवधे देवि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
छागतुष्टे महाभीमे कामख्ये सुरवन्दिते ।
जय कामप्रदे तुष्टे कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
भ्रष्टराज्यो यदा राजा नवम्यां नियतः शुचिः ।
अष्टम्याच्च चतुदर्दश्यामुपवासी नरोत्तमः ॥
संवत्सरेण लभते राज्यं निष्कण्टकं पुनः ।
य इदं श्रृणुवादभक्त्या तव देवि समुदभवम् ॥
सर्वपापविनिर्म्मुक्तः परं निर्वाणमृच्छति ।
श्रीकामरुपेश्वरि भास्करप्रभे, प्रकाशिताम्भोजनिभायतानने ।
सुरारि – रक्षः – स्तुतिपातनोत्सुके, त्रयीमये देवनुते नमामि ॥
सितसिते रक्तपिशङ्गविग्रहे, रुपाणि यस्याः प्रतिभान्ति तानि ।
विकाररुपा च विकल्पितानि, शुभाशुभानामपि तां नमामि ॥
कामरुपसमुदभूते कामपीठावतंसके ।
विश्वाधारे महामाये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
अव्यक्त विग्रहे शान्ते सन्तते कामरुपिणि ।
कालगम्ये परे शान्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
या सुष्मुनान्तरालस्था चिन्त्यते ज्योतिरुपिणी ।
प्रणतोऽस्मि परां वीरां कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
दंष्ट्राकरालवदने मुण्डमालोपशोभिते ।
सर्व्वतः सर्वंव्गे देवि कामेश्वरि नमोस्तु ते ॥
चामुण्डे च महाकालि कालि कपाल – हारिणी ।
पाशहस्ते दण्डहस्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
चामुण्डे कुलमालास्ये तीक्ष्णदंष्ट्र महाबले ।
शवयानस्थिते देवि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
– योगिनीतन्त्र
To know more about Tantra & Astrological services, please feel free to Contact Us :
ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार (मो.) 9438741641 {Call / Whatsapp}
जय माँ कामाख्या

Acharya Pradip Kumar is renowned as one of India's foremost astrologers, combining decades of experience with profound knowledge of traditional Vedic astrology, tantra, mantra, and spiritual sciences. His analytical approach and accurate predictions have earned him a distinguished reputation among clients seeking astrological guidance.

Sharing Is Caring:

Leave a Comment