1. मंत्र – “ओम कर्ण पिशाचि बदातीतानागत ह्रीं स्वाहा”
महर्षि बेदब्यास ने इस मंत्र का जाप किया, फलस्वरुप बे अल्पकाल में ही सर्बज्ञ हो गये ।
2. मंत्र : “कह कह कालिके गृह्य गृह्य पिण्ड पिशाचि स्वाहा”
कर्णपिशाचि का यह दूसरा मंत्र है । इनका ध्यान इस प्रकार है –
कृष्णां रक्त बिलोचनां, त्रिनयनां खबां च लम्बोदरीम् ,
बन्धूकारुण जिहिकां बर कराभी युक् करामुन्मुखीम्।
धूर्माचिजेटिलां कपाल बिलसत् पाणि द्यां चन्च्लाम्,
सबज्ञां श्बहत कृताधिबसतीं पैशाचिकीं तां नुम: ।।
इन कर्णपिशाचि प्रयोग (karnpisachi prayog) बिधि यह है कि पिशाची देबी का अर्धरात्रि के समय ह्र्दय में ध्यान कर दुग्ध, मत्स्य की बलि देकर पूजा करें । बलि प्रदान करने के लिए मंत्र है —
मंत्र – ओम कर्णपिशाचि दग्ध मीन बलिं गृह्य गृह्य मम सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा ।
निम्न मंत्र द्वारा बंन्धुक पुष्प, रक्त चंन्दन और जबा पुरुष आदि पूजा की सामग्री का जल से प्रोख्यण करें ।
मंत्र :- ओम अमृत कुरु देबेशि स्वाहा।
कुछ जप दिन के पूर्बाह्न में कर एक समय निरामिष भोजन मध्याह्न काल में करने के बाद रात्रिकाल में भी पूर्बबत् जप करें । केबल ताम्बुलादि का ही सेवन करें और कुछ नहीं । रोजाना जितना जप करें, निम्न मंत्र से दशांश तर्पण करे-
मंत्र : ओम कर्ण पिशाचिं तर्पयामि ह्रीं स्वाहा।
इस कर्णपिशाचि प्रयोग (karnpisachi prayog) मंत्र का पुरश्चरण एक लाख जप कर दशांश होम करने से होता है । यदि कोई होम करने में असमर्थ हो, तो दशांश तर्पण कर अभीष्ट बर देने की प्रार्थना करें । फिर मूलमंत्र को रक्त चन्दन से लिखकर यंत्र के उपर इष्ट देबता की पूजा करें ।
मंत्र सिद्ध होने के लख्यण है कि यदि आकश में पूर्बोक्त प्रकार से पुरश्चरण करने पर हुंकार कि ध्वनि सुनाई दे और दीर्घाकार अग्नि शिखा दिखाई दे, तो समझो कि मंत्र सिद्ध हो गया और तब तदनुसार कार्य करें ।
3. मंत्र : “ओम कर्ण पिशाचि मे कर्णे कथय हुं फट स्वाहा”
पैरो मे रात्रिकाल में दीपक का तेल मलकर उक्त मंत्र का एक लाख बार जाप करें । इससे यह मंत्र सिद्ध होगा । इस मंत्र की साधना में जप, पूजा और ध्यानादि की जरुरत नहीं होती ।
4. मंत्र – “ओम क्लीं जया देबि स्वाहा। ओम क्लीं जया कर्णपिशाचि स्वाहा।”
ऋष्यादि न्यास को इस कर्णपिशाचि प्रयोग (karnpisachi prayog) मंत्र मे न करें । इसका केबल एक लाख जप करें । एक ग्रुहग्रुह गोधिका को मारकर उसके उपर यथा – “शक्ति जया देबी “ की पूजा करें । बह गोधिका जब तक दोबार जीबीत न हो जाये, तब तक जप करें । उस गोधिका के जीबित होने पर ही कर्णपिशाचि प्रयोग (karnpisachi prayog) मंत्र की सिद्धि होगी । साधक अपने मन में इस मंत्र की सिद्धि होने पर जो भी प्रश्न करेगा, उसका उत्तर तुरन्त देबी आकर देगी और साधक उस ग्रुह गोधिका की पीठ पर भूत और भबिष्य की सारी बातें लिखी हुई देखेगा ।
ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार (मो.) 9438741641 {Call / Whatsapp}
जय माँ कामाख्या
Acharya Pradip Kumar is a renowned astrologer known for his expertise in astrology and powerful tantra mantra remedies. His holistic approach and spiritual sadhana guide clients on journeys of self-discovery and empowerment, providing personalized support to find clarity and solutions to life’s challenges.