मृगाखी किन्नरी रूप गर्बिता है । यह अदित्तीय सौन्दर्य की स्वामिनी है । इसका सौन्दर्य शीतकाल में बृख्य पर गिरी बर्फ की भांति शीतल और आंखों को तृप्ति प्रदान करने बाला है । इस किन्नरी का सौन्दर्य एक ठहराब लिए है, जिसमें साधक शांत निर्मल जल की भांति अपना प्रतिबिम्ब देख सकता है । यह मृगाखी किन्नरी निश्छ्ल प्रेम की देबी है, जिसमें कोई उतेजना या बासना ज्वर नहीं है । इस किन्नरी के पूर्ण शरीर पर मृदुलता बिखरी हुई है । इसी कारण यह रूप गर्बिता है । मृगाखी के कोमल होंठों के भीतर श्वेत और सुघड दंत पंक्ति कि झिलमिलाहट उसकी खिलखिलाहट से स्पष्ट होती है, जो मन में उत्साह का संचारण करने हेतु पर्याप्त है । मृगाखी की मधुर खिलखिलाहट का चित्रण प्राचीन शास्त्रों में इस प्रकार किया गया है कि इसे सुनकर मुनिजन अपना चिन्तन छोडकर इस भ्रम में पड जाते थे कि यह नुपूर ध्वनि है अथबा किसी बाद्य यंत्र से निकला मधुर संगीत स्वर । ऐसी सुमधुर हास्य ध्वनि किसी नारी की भी हो सकती है, यह बिश्वास करना सम्भब नहीं होता ।
धन्वंतरि जैसे आचार्य भी मृगाखी की साधना (Mrigaakhi Kinnari Sadhana) करने हेतु बाध्य हो गये थे, अपने शास्त्र की पूर्ण्ता हेतु । सम्पूर्ण चिकित्सा शास्त्र के रचनाकार ने भी शिथिल हो गए शरीर और इन्द्रियों के पुन: यौबन हेतु इस किन्नरी की साधना की थी कयोंकि यौबन के अभाब में तो सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति ही ब्यर्थ है ।
मृगाखी साधना (Mrigaakhi Kinnari Sadhana) सूर्यास्त के पश्चात् आरम्भ की जाती है । साधक पीले रेशमी बस्त्र धारण करें । इत्र छिडक ले, चौकी पर पीला बस्त्र बिछाकर गुरूचित्र और यंत्र स्थापित करें । सर्बप्रथम गुरू प्रार्थना करें । उसके पश्चात् अख्यत, कुमकुम ब धूप दीप से यंत्र पूजन करें । अब पीत बस्त्र पर गुरू चित्र के सामने ही तांबे के यंत्र के सम्मुख इस मृगाखी मंत्र का जाप करें ।
Mrigaakhi Kinnari Sadhana :
किन्नरी मंत्र : “ॐ मृगाखी किन्नरयै बश्यं कार्यं सिद्धयै फ्ट्”
प्रतिदिन १ माला से शुरू करके दुसरे दिन २ माला, तिसरे दिन ३ माला इस प्रकार २१ बें दिन २१ माला मंत्र जप निरन्तर करें । साधना (Mrigaakhi Kinnari Sadhana) पूर्ण होते ही साधना स्थल पर सुगन्ध का और नुपूर ध्वनि का आभास होगा, यह मृगाखी किन्नरी के प्रकट होने का प्रमाण है । तब उनकी अर्चना करके मनोबांछित बचन ले लें ।
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जय माँ कामाख्या